
हम देखे ढोटा नंद के यह पंक्ति ब्रजभूमि की उस अनुपम झांकी का चित्रण है, जहाँ नंदलाल की बाल लीलाएँ भक्तों के हृदय में जीवंत हो उठती हैं। यह केवल शब्द नहीं, बल्कि वह भाव है जो कान्हा की मुस्कान, उनकी नटखट अदाओं और ग्वाल-बालों के संग उनके हर्षित स्वरूप को सामने ले आता है। इस भजन की गूंज सुनते ही ऐसा प्रतीत होता है मानो स्वयं गोपाल हमारे सम्मुख खड़े होकर प्रेम का आशीष बरसा रहे हों।
Hum Dekhe Dhota Nand Ke
हम देखे ढोटा नंद के।
हौं सखि ! हैं अवतार सुन्यो अस, ब्रह्म सच्चिदानंद के।
भई लटू मैं भटू पटू ह्वै, लखतहिं आनँदकंद के।
सो सुख जान नैन जो पाये, मुसकाने मृदु-मंद के।
सो सुख जानत श्रवण सुन्यो जो, वेनु-बैन ब्रजचंद के।
तुम कृपालु बचि रहियो उनते, वे स्वामी छल-छंद के॥
भावार्थ – एक सखी अपनी अन्तरंग सखि से कहती है कि अरी सखि ! मैंने नन्दकुमार को देखा है। मैंने यह भी सुना है कि वे सच्चिदानन्द ब्रह्म के अवतार हैं। आनन्दकन्द श्यामसुन्दर के देखते ही मैं परम चतुर होकर भी लट्टू हो गयी। अरी सखि ! उनके मन्द-मन्द मुस्कराने से जो सुख मिला उसे केवल नेत्र ही जानते हैं एवं उनकी मधुर मुरली की तान से जो सुख मिला उसे भी केवल कान ही जानते हैं। कृपालु अपने लिए कहते हैं कि वे छलियों के शिरोमणि हैं अतएव तुम उनसे बचे रहना अन्यथा तुम्हारी भी बुरी दशा होगी।
हम देखे ढोटा नंद के का स्मरण हर उस भक्त के लिए आशीर्वाद समान है, जो अपने जीवन में नंदलाल की झलक पाना चाहता है। यह पंक्ति हमें ब्रज के उस अद्भुत वातावरण में ले जाती है, जहाँ हर गली, हर द्वार और हर आंगन में केवल कृष्ण का ही मधुर नाम गूंजता है। जब-जब भक्त इसे गाता है, तब-तब हृदय में यह अनुभूति जागती है कि जीवन का सबसे बड़ा धन्य क्षण वही है जब हम श्रीकृष्ण के दर्शन कर सकें।

