आज के समय में भावनात्मक परिपक्वता अति आवश्यक : प्रो. ए.के. त्यागी

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अंग्रेजी एवं अन्य विदेशी भाषा विभाग, काशी विद्यापीठ द्वारा ‘इमोशनल अल्केमी : टर्न योर वून्ड्स इन विज्डम’ विषयक विशेष व्याख्यान आयोजित

वाराणसी। अंग्रेजी एवं अन्य विदेशी भाषा विभाग, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ द्वारा ‘इमोशनल अल्केमी : टर्न योर वून्ड्स इन विज्डम’ विषयक विशेष व्याख्यान का आयोजन किया गया। मानविकी संकाय के सभागार में आयोजित कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. आनंद कुमार त्यागी ने कहा कि आज के समय में भावनात्मक परिपक्वता अति आवश्यक है। साहित्य के विद्यार्थियों के लिए भावनात्मक शक्ति एवं परिपक्वता और अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि उनकी रचनात्मकता सीधे तौर पर समाज को प्रभावित करती है। किसी भी बच्चे की सफलता एवं असफलता के लिए वह स्वयं जिम्मेदार नहीं होता है, बल्कि उसकी पारिवारिक एवं सामाजिक परिस्थितियां भी जिम्मेदार होती हैं। उन्होंने कहा कि माता-पिता की जिम्मेदारी है कि वह बच्चों को 2 वर्ष की अवस्था से ही भावनात्मक रूप से जोड़कर रखें। वे उन्हें सिर्फ सफलता प्राप्त करने के लिए ही प्रेरित न करें बल्कि हार को स्वीकार करने के लिए भी मानसिक रूप से तैयार करें।

मुख्य वक्ता फॉरेंसिक साइंस और माइंड साइंस विशेषज्ञ डॉ. मंगेश कुमार ने अपने विद्यार्थियों को मानसिक एवं भावनात्मक स्वास्थ्य के प्रति जागरुक करते हुए बताया कि बुद्धि लब्धि के साथ भावनात्मक लब्धि भी समान रूप से महत्वपूर्ण है। उन्होंने बताया कि प्रत्येक व्यक्ति चार अलग-अलग शरीर-भौतिक, मानसिक भावनात्मक एवं आध्यात्मिक के साथ पैदा होते हैं और प्रत्येक पक्ष का सही समय पर विकसित होना अत्यंत आवश्यक है। आज हम सतत रूप से एक भावनात्मक द्वंद्व की स्थिति में रहते हैं। हमें ऐसा लगता है कि हम जिस संसार को देख रहे हैं, जो सुन रहे हैं, वही सत्य है, जबकि हम इस बात से बिल्कुल अनजान होते हैं कि वास्तव में हम एक दोहरी दुनिया में रहते हैं- पहली बाहरी दुनिया जिसे हम देख और सुन सकते हैं तथा दूसरी हमारे अपने अंदर की दुनिया। हमें सबसे अधिक आवश्यकता स्वयं को जानने, खुद से प्यार करने की है। हमें दूसरों को क्षमा करना सीखना होगा और अपने अंदर कृतज्ञता का भाव उत्पन्न करना होगा, क्योंकि यही वे चीजें हैं जो हमें भावनात्मक शक्ति प्रदान करती हैं और हमारे अंदर सकारात्मक का संचार करती हैं।

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प्रो. नलिनी श्याम कामिल ने कहा की भावना, संवेदना एवं अनुभूति मानव जीवन के तीन महत्वपूर्ण पक्ष हैं। इनके बिना एक आदर्श मनुष्य की कल्पना नहीं की जा सकती। साहित्य हमारे अंदर इन्हीं भावनाओं एवं मूल्यों को पोषित करता है। हमारा यह प्रयास होना चाहिए कि हम प्रकृति एवं ईश्वर प्रदत्त चीजों में ही संतुष्ट रहते हुए सदैव बेहतरीन के लिए प्रयास करते रहें।इसी से मनुष्य जीवन को सुखमय बनाया जा सकता है ।

स्वागत एवं विषय प्रवर्तन विभागाध्यक्ष एवं कार्यक्रम समन्वयक डॉ. निशा सिंह, संचालन डॉ. किरन सिंह एवं धन्यवाद ज्ञापन डॉ. नीरज सोनकर ने किया। इस अवसर पर मानविकी संकाय अध्यक्ष प्रो. अनुराग कुमार, छात्र कल्याण संकाय अध्यक्ष प्रो. राजेश कुमार मिश्र, कुलानुशासन प्रो. के.के. सिंह, डॉ. नवरत्न सिंह, डॉ. कविता आर्य, डॉ. रीना चटर्जी, डॉ. आरती विश्वकर्मा आदि उपस्थित रहे।