वेदों में अग्नि का अत्यंत उच्च स्थान है। अग्नि न केवल यज्ञ का माध्यम है बल्कि यह शुद्धिकरण, ऊर्जा और चेतना का प्रतीक भी है। अग्नि गायत्री मंत्र, विशेष रूप से अग्नि देवता की स्तुति के लिए उपयोग किया जाता है। इस मंत्र का जप करने से जीवन में शक्ति, शुद्धि और दिव्यता का संचार होता है। इस लेख में हम आपको अग्नि गायत्री मंत्र, उसकी विधि और लाभ विस्तार से बताएंगे।
गायत्री मंत्र
“ॐ महाज्वालाय विद्महे अग्निरूपाय धीमहि
तन्नो अग्निः प्रचोदयात्।”
अग्नि गायत्री मंत्र न केवल वेदों की गरिमा को प्रकट करता है, बल्कि यह साधक को आत्मबल, तेज और शुद्धता प्रदान करता है। यदि आप जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाना चाहते हैं, तो इस दिव्य मंत्र का नियमित जप अवश्य करें। यह मंत्र साधना का एक सशक्त साधन है जो जीवन को ऊर्जावान और प्रेरणादायक बना देता है।
जप विधि
- प्रातःकाल स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करें।
- पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें।
- पीले या लाल रंग के आसन का उपयोग करें।
- सामने तांबे के पात्र में जल, पुष्प और दीपक रखें।
- पहले तीन बार “ॐ भूर्भुवः स्वः” बोलकर शांति का ध्यान करें।
- फिर अग्नि गायत्री मंत्र का जप करें।
- कम से कम 108 बार (एक माला) जप करें।
- अंत में अग्नि देव से अपने कष्टों के निवारण व ऊर्जा की प्रार्थना करें।
मंत्र के लाभ
आत्मशुद्धि और मानसिक शांति – यह मंत्र शरीर और मन दोनों की शुद्धि करता है।
ऊर्जा और शक्ति की प्राप्ति – नियमित जप से जीवन में नई ऊर्जा और साहस का संचार होता है।
नकारात्मकता का नाश – घर और मन से नकारात्मकता को हटाता है।
साधना में सफलता – ध्यान, साधना और यज्ञ में इस मंत्र से विशेष सिद्धि मिलती है।
स्वास्थ्य में सुधार – शरीर में अग्नि तत्व के संतुलन से स्वास्थ्य अच्छा रहता है।