भगवान मुरुगन, जिन्हें कार्तिकेय, स्कंद या सुब्रह्मण्य के नाम से भी जाना जाता है, दक्षिण भारत के प्रमुख देवताओं में से एक हैं। वे भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र हैं और उन्हें युद्ध, ज्ञान और विजय के देवता माना जाता है। मुरुगन गायत्री मंत्र एक शक्तिशाली वैदिक मंत्र है जो साधक को अद्भुत आत्मिक ऊर्जा, रक्षा और शुद्ध बुद्धि प्रदान करता है। इस लेख में हम इस दिव्य मंत्र की विधि, लाभ और महत्व को विस्तार से समझेंगे।
गायत्री मंत्र
“ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महा सेनाय धीमहि
तन्नो शुक्रः प्रचोदयात्॥”
मुरुगन गायत्री मंत्र एक अत्यंत शक्तिशाली और फलदायक वैदिक मंत्र है, जो साधक को मानसिक, शारीरिक और आत्मिक लाभ प्रदान करता है। नियमित रूप से इस मंत्र का विधिपूर्वक जाप करने से जीवन में सफलता, शांति और समृद्धि प्राप्त होती है। अगर आप भी भगवान मुरुगन की कृपा प्राप्त करना चाहते हैं, तो आज ही इस मंत्र का जाप शुरू करें और अपने जीवन को नई दिशा दें।
मंत्र जाप की विधि
- प्रातःकाल सूर्योदय से पहले स्नान कर लें
- एक शांत और पवित्र स्थान चुनें
- भगवान मुरुगन की मूर्ति या चित्र के सामने दीपक और अगरबत्ती जलाएं
- लाल या पीले वस्त्र पहनें
- अपने सामने जल से भरा तांबे का लोटा रखें
- कम से कम 11, 21 या 108 बार मंत्र का जाप करें
- जाप के बाद भगवान मुरुगन से अपने मनोकामना कहें
- अंत में भगवान मुरुगन की आरती करें
मंत्र जाप के लाभ
- बुद्धि और विवेक की प्राप्ति – यह मंत्र साधक की एकाग्रता और निर्णय क्षमता को बढ़ाता है।
- संतान प्राप्ति में सहायक – भगवान मुरुगन की कृपा से संतान सुख की प्राप्ति होती है।
- रोग नाशक – शारीरिक और मानसिक रोगों से मुक्ति दिलाता है।
- शत्रु नाश – यह मंत्र साधक की रक्षा करता है और शत्रुओं से मुक्ति दिलाता है।
- भय और मानसिक तनाव से मुक्ति – इस मंत्र के जाप से भय दूर होता है और मन को शांति मिलती है।
- आध्यात्मिक उन्नति – साधक को आत्मज्ञान और ईश्वर से जुड़ने की अनुभूति होती है।