गायत्री मंत्र वैदिक संस्कृति का एक अनमोल रत्न है। यह मंत्र न केवल आध्यात्मिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है, बल्कि मानसिक और शारीरिक रूप से भी व्यक्ति को शक्ति प्रदान करता है। ‘ॐ गायत्री मंत्र’ शब्द स्वयं में ऊर्जा और चेतना का केंद्र है। यह लेख उन सभी साधकों और जिज्ञासुओं के लिए है जो इस दिव्य मंत्र को अपने जीवन में स्थान देना चाहते हैं। आइए जानते हैं इस मंत्र की विधि, लाभ और इसके जप का सही तरीका।
मंत्र
ॐ भूर्भुवः स्वः।
तत्सवितुर्वरेण्यं। भर्गो देवस्य धीमहि।
धियो यो नः प्रचोदयात्॥
ॐ गायत्री मंत्र केवल एक वैदिक मंत्र नहीं, बल्कि आत्मा की जागृति का साधन है। इसका नियमित जप जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन ला सकता है। जो साधक इस मंत्र को श्रद्धा और नियम से जपते हैं, वे मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक रूप से पूर्ण होते हैं। यदि आप भी अपने जीवन में सच्ची शांति, सफलता और सद्बुद्धि की प्राप्ति चाहते हैं, तो आज से ही गायत्री मंत्र का जप प्रारंभ करें।
जप की विधि
- प्रातःकाल सूर्योदय से पहले उठें।
- स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करें।
- शांत और पवित्र स्थान पर पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें।
- आसन के रूप में कुश या ऊन का आसन प्रयोग करें।
- सामने एक दीपक जलाएँ।
- अपने सामने गायत्री माता की प्रतिमा या चित्र रखें।
- आँखें बंद कर, ध्यानपूर्वक मंत्र का उच्चारण करें।
- मंत्र का जप कम से कम 108 बार करें (एक माला)।
- जप करते समय मन में किसी भी नकारात्मक विचार को न आने दें।
- नियमित रूप से प्रतिदिन जप करें।
मंत्र के लाभ
- मानसिक शांति – यह मंत्र मानसिक तनाव और चिंता को दूर करता है।
- बुद्धि विकास – विद्यार्थी वर्ग के लिए यह मंत्र विशेष लाभकारी है, यह स्मरण शक्ति को तेज करता है।
- आध्यात्मिक उन्नति – साधक को आत्मज्ञान की ओर अग्रसर करता है।
- ऊर्जा का संचार – शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है।
- नकारात्मक ऊर्जा से रक्षा – यह मंत्र बुरी शक्तियों से सुरक्षा प्रदान करता है।
- ध्यान में सहायक – ध्यान की गहराई को बढ़ाता है और आत्मा को शांत करता है।