शनि गायत्री मंत्र और शनि चालीसा: महत्व, विधि और लाभ

शनि गायत्री मंत्र
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परिचय
शनि देव की पूजा भारतीय सनातन धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। शनि देव के बारे में कहा जाता है कि वे कर्मफल दाता हैं, और वे अपनी उपस्थिति से जीवन में उतार-चढ़ाव लाते हैं। उनके प्रतिकूल प्रभाव से बचने के लिए शनि गायत्री मंत्र और शनि चालीसा का पाठ एक प्रभावी उपाय माना जाता है। इन दोनों का सही तरीके से पाठ करने से शनि देव की कृपा प्राप्त होती है, जिससे जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है।

मंत्र

ॐ भग-भवाय विद्महे मृत्युरूपाय धीमहि
तन्नो शनिः प्रचोदयात् ॥
ॐ भगभवाय विद्महे मृत्युरूपाय धीमहि

तन्नो शनिः प्रचोदयात्

शनि गायत्री मंत्र और शनि चालीसा के नियमित पाठ से जीवन में शांति, समृद्धि और सफलता की प्राप्ति होती है। इन दोनों उपायों का पालन करने से शनि देव की विशेष कृपा प्राप्त होती है, जो जीवन के कठिन समय में सहारा देती है। यदि आप भी शनि देव की कृपा पाना चाहते हैं, तो इन विधियों का पालन करें और अपने जीवन को बेहतर बनाएं।

मंत्र की विधि

स्वच्छ स्थान पर बैठें: सबसे पहले एक स्वच्छ और शांत स्थान का चयन करें।

स्नान करें: स्नान के बाद शुद्ध अवस्था में बैठें।

मंत्र का उच्चारण करें: शनि गायत्री मंत्र का जाप 108 बार करें। जाप माला का उपयोग करने से मंत्र के प्रभाव में वृद्धि होती है।

दीपक जलाएं: एक दीपक जलाएं और शनि देव का ध्यान करें।

प्रसाद चढ़ाएं: शनि देव को तिल, तेल, काले उड़द और तंबाकू का प्रसाद चढ़ाएं।

लाभ

  1. शनि के प्रभाव से मुक्ति: यदि शनि देव की कृपा नहीं हो रही है, तो इस मंत्र और चालीसा का पाठ शनि के कुप्रभाव से मुक्ति दिलाता है।
  2. धन-संपत्ति में वृद्धि: नियमित पाठ से आर्थिक स्थिति में सुधार होता है।
  3. सुख-शांति की प्राप्ति: जीवन में आने वाली परेशानियों और मानसिक तनाव से मुक्ति मिलती है।
  4. स्वास्थ्य में लाभ: शनि के दुष्प्रभाव से होने वाली बीमारियों से भी राहत मिलती है।
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