गायत्री मंत्र का अर्थ: आध्यात्मिक जागृति का अमृतमंत्र

गायत्री मंत्र का अर्थ
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गायत्री मंत्र को वेदों की जननी और सर्वोच्च मंत्रों में गिना जाता है। यह मंत्र न केवल आध्यात्मिक बल प्रदान करता है, बल्कि मानसिक, शारीरिक और आत्मिक शुद्धि का स्रोत भी है। ‘गायत्री मंत्र का अर्थ’ जानना हमारे लिए आवश्यक है ताकि इसका जप करते समय हम केवल ध्वनि नहीं, उसकी आत्मा को भी अनुभव कर सकें। इस लेख में हम आपको गायत्री मंत्र का शाब्दिक अर्थ, इसकी जप विधि और लाभों की जानकारी सरल और भावनात्मक शैली में देंगे।

गायत्री मंत्र का अर्थ


ॐ भूर्भव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं,
भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

अर्थ– उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अपने आंतरिक ध्यान में धारण करते है। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को अच्छे कार्य की ओर प्रेरित करे।

गायत्री मंत्र केवल एक वैदिक मंत्र नहीं, बल्कि जीवन को दिव्यता की ओर ले जाने वाला साधन है। जो साधक श्रद्धा और नियमपूर्वक इसका जप करता है, उसे आत्मबल, ज्ञान और अद्भुत मानसिक शांति प्राप्त होती है। गायत्री माता की कृपा पाने के लिए इस मंत्र को केवल रटें नहीं, उसके भावार्थ को समझकर आत्मसात करें। यही सच्चा जप है।

जप की विधि

  • ब्रह्ममुहूर्त (सुबह 4 से 6 बजे के बीच) उठकर स्नान करें।
  • स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • पूजन स्थान या शांत स्थान पर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें।
  • सामने दीपक और जल पात्र रखें।
  • आसन का प्रयोग करें (कुश या ऊनी)।
  • गायत्री माता की मूर्ति या चित्र का ध्यान करें।
  • आँखें बंद करके गायत्री मंत्र का जप करें।
  • कम से कम 108 बार जप करें (माला का उपयोग करें)।
  • जप के बाद हाथ जोड़कर प्रार्थना करें और शांति मंत्र पढ़ें।
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मंत्र जप के लाभ

  1. मानसिक शांति — यह मंत्र मन को स्थिर और शांत करता है।
  2. बुद्धि विकास — छात्र और साधकों के लिए विशेष रूप से लाभकारी।
  3. नकारात्मक ऊर्जा से रक्षा — नकारात्मक शक्तियों से रक्षा करता है।
  4. कर्म शुद्धि — हमारे पाप कर्मों का क्षय करता है।
  5. ध्यान और साधना में उन्नति — ध्यान की गहराई बढ़ाता है।
  6. चक्र जागरण — विशेष रूप से आज्ञा और सहस्रार चक्र पर प्रभाव डालता है।