हिन्दू धर्म में माँ दुर्गा को शक्ति, साहस और रक्षा की देवी माना जाता है। माँ के नौ रूपों की आराधना नवरात्रि सहित पूरे वर्ष भर होती रहती है। दुर्गा चालीसा एक ऐसा दिव्य स्तोत्र है, जो भक्त को माँ की शरण में ले जाकर जीवन की समस्त बाधाओं से मुक्ति दिलाता है। इस लेख में हम “Durga Chalisa” की महिमा, पाठ विधि और लाभों के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे।
॥दुर्गा चालीसा॥
नमो नमो दुर्गे सुख करनी,
नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी॥1॥
निरंकार है ज्योति तुम्हारी,
तिहूं लोक फैली उजियारी॥2॥
शशि ललाट मुख महाविशाला,
नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥3॥
रूप मातु को अधिक सुहावे,
दरश करत जन अति सुख पावे॥4॥
तुम संसार शक्ति लै कीना,
पालन हेतु अन्न धन दीना॥5॥
अन्नपूर्णा हुई जग पाला,
तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥6॥
प्रलयकाल सब नाशन हारी,
तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥7॥
शिव योगी तुम्हरे गुण गावें,
ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥8॥
रूप सरस्वती को तुम धारा,
दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा॥9॥
धरयो रूप नरसिंह को अम्बा,
परगट भई फाड़कर खम्बा॥10॥
रक्षा करि प्रह्लाद बचायो,
हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥11॥
लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं,
श्री नारायण अंग समाहीं॥12॥
क्षीरसिन्धु में करत विलासा,
दयासिन्धु दीजै मन आसा॥13॥
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी,
महिमा अमित न जात बखानी॥14॥
मातंगी अरु धूमावति माता,
भुवनेश्वरी बगला सुख दाता॥15॥
श्री भैरव तारा जग तारिणी,
छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥16॥
केहरि वाहन सोह भवानी,
लांगुर वीर चलत अगवानी॥17॥
कर में खप्पर खड्ग विराजै,
जाको देख काल डर भाजै॥18॥
सोहै अस्त्र और त्रिशूला,
जाते उठत शत्रु हिय शूला॥19॥
नगरकोट में तुम्हीं विराजत,
तिहुंलोक में डंका बाजत॥20॥
शुंभ निशुंभ दानव तुम मारे,
रक्तबीज शंखन संहारे॥21॥
महिषासुर नृप अति अभिमानी,
जेहि अघ भार मही अकुलानी॥22॥
रूप कराल कालिका धारा,
सेन सहित तुम तिहि संहारा॥23॥
परी गाढ़ संतन पर जब जब,
भई सहाय मातु तुम तब तब॥24॥
अमरपुरी अरु बासव लोका,
तब महिमा सब रहें अशोका॥25॥
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी,
तुम्हें सदा पूजें नर-नारी॥26॥
प्रेम भक्ति से जो यश गावें,
दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें॥27॥
ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई,
जन्म-मरण ताकौ छुटि जाई॥28॥
जोगी सुर मुनि कहत पुकारी,
योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी॥29॥
शंकर आचारज तप कीनो,
काम अरु क्रोध जीति सब लीनो॥30॥
निशिदिन ध्यान धरो शंकर को,
काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥31॥
शक्ति रूप का मरम न पायो,
शक्ति गई तब मन पछितायो॥32॥
शरणागत हुई कीर्ति बखानी,
जय जय जय जगदम्ब भवानी॥33॥
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा,
दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥34॥
मोको मातु कष्ट अति घेरो,
तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो॥35॥
आशा तृष्णा निपट सतावें,
रिपू मुरख मौही डरपावे॥36॥
शत्रु नाश कीजै महारानी,
सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी॥37॥
करो कृपा हे मातु दयाला,
ऋद्धि-सिद्धि दै करहु निहाला॥38॥
जब लगि जिऊं दया फल पाऊं,
तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं ॥39॥
दुर्गा चालीसा जो कोई गावै,
सब सुख भोग परमपद पावै॥40॥
देवीदास शरण निज जानी,
करहु कृपा जगदम्ब भवानी ॥0॥
|| समाप्त ||
Durga Chalisa का पाठ एक भक्त को माँ दुर्गा की दिव्य शरण में ले जाता है, जहाँ भय, दुख और संकट का कोई स्थान नहीं रहता। यदि आप भी माँ की कृपा और आशीर्वाद पाना चाहते हैं, तो श्रद्धा और नियमपूर्वक दुर्गा चालीसा का पाठ करें। यह आपके जीवन को आध्यात्मिक ऊर्जा, सुरक्षा और समृद्धि से भर देगा।
पाठ की विधि
- प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें।
- घर के मंदिर में या किसी शांत स्थान पर बैठें।
- माँ दुर्गा की मूर्ति या चित्र के सामने दीपक और अगरबत्ती जलाएं।
- लाल फूल, चावल, रोली और नैवेद्य (मिठाई या फल) अर्पित करें।
- पहले दुर्गा जी का ध्यान करें।
- फिर श्रद्धा भाव से Durga Chalisa का पाठ करें।
- अंत में माँ दुर्गा से प्रार्थना कर आशीर्वाद लें।
लाभ
- नकारात्मक ऊर्जा और भय से मुक्ति मिलती है।
- मानसिक शांति और आत्मबल प्राप्त होता है।
- जीवन में साहस, शक्ति और आत्मविश्वास बढ़ता है।
- शत्रुओं से रक्षा होती है और संकट टलते हैं।
- माँ दुर्गा की कृपा से सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है।
- परिवार में शांति और मंगल का वातावरण बना रहता है।