शनि देव को न्याय का देवता माना जाता है, जो हमारे कर्मों के अनुसार फल प्रदान करते हैं। जब शनि की साढ़ेसाती या ढैय्या का प्रभाव होता है, तो जीवन में कई तरह की समस्याएँ और रुकावटें आती हैं। ऐसे समय में “दशरथ कृत शनि स्तोत्र” एक अत्यंत प्रभावशाली उपाय है, जिसे स्वयं अयोध्या नरेश राजा दशरथ ने शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए रचा था। इस लेख में हम इस स्तोत्र की महिमा, पाठ विधि और लाभ को विस्तार से समझेंगे।
दशरथ कृत शनि स्तोत्र
नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठनिभाय च।
नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम: ।।
नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च।
नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते।।
नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:।
नमो दीर्घायशुष्काय कालदष्ट्र नमोऽस्तुते।।
नमस्ते कोटराक्षाय दुर्निरीक्ष्याय वै नम:।
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने।।
नमस्ते सर्वभक्षाय वलीमुखायनमोऽस्तुते।
सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करे भयदाय च।।
अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तुते।
नमो मन्दगते तुभ्यं निरिस्त्रणाय नमोऽस्तुते।।
तपसा दग्धदेहाय नित्यं योगरताय च।
नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम:।।
ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज सूनवे।
तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात्।।
देवासुरमनुष्याश्च सिद्घविद्याधरोरगा:।
त्वया विलोकिता: सर्वे नाशंयान्ति समूलत:।।
प्रसाद कुरुमे देव वाराहोऽहमुपागत।
एवं स्तुतस्तद सौरिग्र्रहराजो महाबल:।।
दशरथ कृत शनि स्तोत्र एक अत्यंत चमत्कारी स्तोत्र है जो शनिदेव की कृपा पाने का सरल और प्रभावी मार्ग है। यदि आप अपने जीवन में शनि के कारण परेशानियों का सामना कर रहे हैं, तो इस स्तोत्र का विधिपूर्वक पाठ करें। यह न केवल ग्रहों के दुष्प्रभाव को दूर करता है, बल्कि जीवन में स्थिरता और सुख-शांति भी प्रदान करता है।
दशरथ कृत शनि स्तोत्र पाठ की विधि
- प्रातः ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान करें।
- शनिदेव की प्रतिमा या चित्र के सामने नीले वस्त्र पहनकर बैठें।
- तेल का दीपक जलाएँ और काले तिल व नीले पुष्प अर्पित करें।
- 108 बार “ॐ शं शनैश्चराय नमः” मंत्र का जाप करें।
- शांत चित्त होकर दशरथ कृत शनि स्तोत्र का पाठ करें।
- शनिवार को व्रत रखें और किसी गरीब को काला वस्त्र व तिल दान करें।
- यह पाठ लगातार 40 दिनों तक करें या हर शनिवार नियमित करें।
दशरथ कृत शनि स्तोत्र के लाभ
- साढ़ेसाती और ढैय्या से राहत – यह स्तोत्र शनिदेव के कुप्रभाव को शांत करता है।
- कर्मों का शुद्धिकरण – बुरे कर्मों के प्रभाव को कम करता है और अच्छे कर्मों की ओर प्रेरित करता है।
- रोगों से मुक्ति – विशेषकर हड्डी, जोड़ों और नसों से जुड़ी समस्याओं में लाभकारी है।
- व्यवसाय में वृद्धि – कार्यों में आ रही रुकावटें दूर होती हैं और सफलता मिलती है।
- मानसिक शांति – तनाव, भय और अनावश्यक चिंता से मुक्ति मिलती है।