


राजातालाब।भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की संस्था भारतीय सब्जी अनुसन्धान संस्थान,शाहंशाहपुर वाराणसी के तत्वाधान में संचालित अखिल भारतीय समन्वित शोध परियोजना (सब्जी फसल) की 43वीं वार्षिक समूह बैठक का आयोजन लुधियाना स्थित प्रतिष्ठित पंजाब कृषि विश्वविद्यालय में 3 से 5 मार्च 2025 को किया किया। इस मंच पर देश भर के ख्यातिलब्ध सब्जी वैज्ञानिकों, शोधकर्ताओं, निजी बीज कंपनियों और नीति निर्माताओं को एक साथ लाकर वैज्ञानिक चर्चा को बढ़ावा देने, अनुसंधान सहयोग को सशक्त बनाने और भारत में सब्जी फसलों के सतत विकास के लिए नवाचारों को प्रोत्साहित करने पर बल दिया गया। इस तीन दिवसीय कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ. एस.के. सिंह, उपमहानिदेशक (उद्यानिकी विज्ञान), भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली ने उद्घाटन भाषण में सब्जी फसलों की खाद्य एवं पोषण सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित किया। उन्होंने सब्जी वैज्ञानिकों के योगदान की सराहना करते हुए कहा कि उनकी विकसित की गई किस्में देश भर में व्यापक रूप से अपनाई जा रही हैं, जिससे किसानों और उपभोक्ताओं को सीधा लाभ मिल रहा है। जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का सामना करने के लिए उन्होंने रूटस्टॉक पर अनुसंधान को मजबूत करने और सब्जी अनुसंधान में कृत्रिम बुद्धिमत्ता और रोबोटिक्स को शामिल करने का आह्वान किया।
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति, डॉ. सतबीर सिंह गोसल ने बताया कि 1970 के दशक की शुरुआत में इस विश्वविद्यालय द्वारा स्थापित सब्जी विज्ञान विभाग, सब्जी अनुसंधान एवं उत्पादन में अग्रणी भूमिका निभा रहा है। उन्होंने पंजाब में सब्जियों की खेती से सम्बंधित शोध उपलब्धियों की चर्चा की तथा शोध सहयोग हेतु भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर आइसीएआर के सहायक महानिदेशक (उद्यान) डॉ. सुधाकर पांडे, भारतीय सब्जी अनुसन्धान संस्थान वाराणसी के कार्यवाहक निदेशक डॉ.नागेन्द्र राय, परियोजना समन्वयक (सब्जी फसलें) डॉ. राजेश कुमार, पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशक डॉ. ए.एस. धत्त और डॉ. एम.आई.एस. गिल ने भी महत्वपूर्ण विचार प्रस्तुत किए। बैठक के दौरान परियोजना समन्वयक डॉ. राजेश कुमार ने परियोजना का 2024-25 का वार्षिक प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। इस अवसर पर पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना को “सर्वश्रेष्ठ अ.भा.स.शो.प.- सब्जी फसल (एआईसीआरपी-वीसी) समन्वय केंद् -2024” पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
इस तीन दिवसीय बैठक में कुल नौ तकनीकी सत्र आयोजित किये गए जिनमें सब्जियों की नवीन किस्मों, संकरों, सब्जी उत्पादन, सब्जी फसल सुरक्षा, बीज उत्पादन से जुड़े पहलुओं पर विस्तार से चर्चा हुई। बैठक के अंतिम दिन गहन चर्चा और तकनीकी सत्रों का आयोजन किया गया, जिससे सब्जी उत्पादन, पोषण सुरक्षा और स्थायित्व को बढ़ावा देने वाले अनुसंधान कार्यक्रमों को मजबूत करने का मार्ग प्रशस्त हुआ। इस दौरान ‘जनजातीय उप-योजना एवं अनुसूचित जाति उप-योजना कार्यक्रम’ पर एक विशेष तकनीकी सत्र आयोजित की गई। इस सत्र में वंचित किसान समुदायों के लिए अनुसंधान हस्तक्षेपों और विस्तार रणनीतियों पर चर्चा की गई। इस अवसर पर देश के विभिन्न कृषि-जलवायु क्षेत्रों हेतु सब्जी फसलों की कुल 6 मुक्त परागित एवं 10 संकरों की संस्तुति की गयी जिनमें चेरी टमाटर, फूल गोभी, सब्जी मटर, लौकी, लाइपत्ता, मिर्च, पत्ता गोभी, गाज़र, खीरा एवं नेनुआ सम्मिलित है। इस तीन दिवसीय सम्मलेन में देश भर से लगभग 200 वैज्ञानिकों ने प्रतिभाग किया।
समापन सत्र की अध्यक्षता डॉ. सुधाकर पांडेय ने की, जबकि सह-अध्यक्ष के रूप में डॉ. राजेश कुमार, परियोजना समन्वयक उपस्थित रहे। इस दौरान तीन दिनों में आयोजित नौ तकनीकी सत्रों की प्रमुख सिफारिशों और निष्कर्षों को प्रस्तुत किया गया। चर्चा का मुख्य फोकस नवीन शोध निष्कर्षों, उन्नत प्रजनन तकनीकों, जलवायु-रोधी सब्जी किस्मों और सटीक बागवानी तकनीकों को आगामी अनुसंधान कार्यक्रमों में शामिल करने पर रहा। आगामी वर्ष के लिए वैज्ञानिक रोडमैप तैयार किया गया, जिसमें राष्ट्रीय कृषि प्राथमिकताओं और स्थायित्व लक्ष्यों के साथ तालमेल बनाए रखने पर जोर दिया गया। विशेषज्ञों ने नवाचार-आधारित प्रजनन रणनीतियों, संसाधनों के कुशल उपयोग और नीति-स्तर पर हस्तक्षेपों की आवश्यकता पर बल दिया ताकि सब्जी उत्पादन और आपूर्ति श्रृंखला से संबंधित उभरती चुनौतियों का समाधान किया जा सके।
43वीं वार्षिक समूह बैठक न केवल एक विचार-मंथन मंच के रूप में कार्यरत रही, बल्कि इसने सब्जी फसल विज्ञान में भविष्य के नवाचारों की नींव भी रखी। इस बैठक में हुई चर्चाओं और प्रस्तावों से वैज्ञानिक अनुसंधान और नीति-निर्माण में नए आयाम जुड़ने की उम्मीद है, जिससे भारत के कृषि परिदृश्य को मजबूती मिलेगी और लाखों लोगों के लिए पोषण सुरक्षा सुनिश्चित होगी।
