RS Shivmurti

महाकुंभ में 45 दिनों में 66 करोड़ 30 लाख लोगों ने हिस्सा लिया

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महाशिवरात्रि के मौके पर 45 दिनों के बाद दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक आयोजन महाकुम्भ का समापन हो गया है। और अब अगला महाकुंभ 144 वर्षों के बाद वर्ष 2169 में आएगा।
इस बार 45 दिनों के महाकुम्भ में कुल 66 करोड़ 30 लाख लोगों ने प्रयागराज की त्रिवेणी में पवित्र स्नान किया और ये दुनिया का सबसे बड़ा जनमत संग्रह है।
पिछले साल लोकसभा के चुनावों में 44 दिनों में कुल 64 करोड़ 64 लाख लोगों ने अपना वोट डाला था। लेकिन इस महाकुंभ में 45 दिनों में 66 करोड़ 30 लाख लोगों ने हिस्सा लिया है और ये दुनिया का सबसे बड़ा सर्वे है, जिसमें भारत के हिन्दुओं ने ये बताया है कि वो अपने धर्म, अपनी संस्कृति और अपनी परम्पराओं के बारे में क्या सोचते हैं। एक अनुमान के मुताबिक पिछले 45 दिनों में पूरी दुनिया के 800 करोड़ लोगों में से 40 करोड़ लोग छुट्टियां मनाने के लिए दूसरे शहर, राज्य, प्रांत और देशों में गए। लेकिन इसी दौरान भारत में 66 करोड़ लोगों ने महाकुम्भ की तीर्थयात्रा की और ये अब तक के मानव इतिहास की सबसे बड़ी तीर्थयात्रा और सबसे बड़ा आयोजन बन गया है।
ये आंकड़ा कतर जैसे 223 .. New Zealand जैसे 131 .. Singapore जैसे 117 .. इज़रायल जैसे 72 .. ऑस्ट्रेलिया जैसे 25 .. सऊदी अरब जैसे 20 .. कनाडा जैसे 17 .. ब्रिटेन जैसे 10 .. बांग्लादेश जैसे 4 .. पाकिस्तान जैसे 3 .. और अमेरिका जैसे 2 देशों की आबादी के बराबर है .. आपने आज तक नेताओं की रैलियों के बारे में सुना होगा। लेकिन ये भगवान की सबसे बड़ी रैली थी, जिसमें 66 करोड़ लोग शामिल हुए। और दुनिया में आज तक किसी भी देश, किसी भी क्षेत्र और किसी भी धर्म ने इतनी भीड़ इकट्ठा नहीं की है। और आज भारत ने महाकुम्भ के समापन के साथ एक नया महा-रिकॉर्ड बना दिया है। और ये सिर्फ महा-रिकॉर्ड नहीं है। बल्कि ये दुनिया का सबसे बड़ा सर्वे है, जिसका Sample Size है, 66 करोड़ 30 लाख .. दुनिया में आज तक एक भी सर्वे ऐसा नहीं हुआ, जिसका Sample Size 1 करोड़ से ज्यादा रहा हो लेकिन ये पहला ऐसा जनमत संग्रह है जिसमें भारत के 66 करोड़ लोगों ने अपने मिजाज़ के बारे में लोगों को बताया है और ये जनमत संग्रह देश को पांच बातों और बदलावों के बारे में बताता है।
इस बार के महाकुम्भ ने ये भी बताया कि अब भारत में सनातन धर्म का स्वरूप पूरी तरह से बदल चुका है और अब लोगों में सनातन धर्म को लेकर एक नई जागृति आई है। इस बार के महाकुम्भ में जो 66 करोड़ हिन्दू शामिल हुए, वो अपने धर्म, अपनी संस्कृति और अपनी पहचान को लेकर शर्मिंदा नहीं थे। इस महाकुम्भ में भारत के करोड़ों हिन्दुओं ने धर्मनिरपेक्षता की एक नई परिभाषा को भी गढ़ा और देश को ये बताया कि सनातनी होने से धर्मनिरपेक्षता समाप्त नहीं होती। जब भारत में मुस्लिम आक्रमणकारियों और अंग्रेज़ों का शासन था, उस दौर में भारत के लोगों की ये धारणा बनाई गई कि सनातन धर्म अंधविश्वास और पिछड़ेपन का सूचक है।
भारत को संपेरों का देश कहा गया और हमारी संस्कृति और परम्पराओं का सैकड़ों वर्षों तक मज़ाक़ बनाया गया। इस देश के हिन्दुओं ने ये भी सुना कि पत्थर में भगवान कैसे हो सकते हैं .. और ये भी सुना कि किसी नदी में स्नान करने से पाप कैसे धुल सकते हैं ..भारत के लोग ये ताने और ये मज़ाक़ सैकड़ों वर्षों से सह रहे थे। लेकिन इस महाकुम्भ में 66 करोड़ हिन्दुओं ने शामिल होकर ये बताया कि अगर ये करोड़ों हिन्दू संगम में पवित्र स्नान कर रहे हैं तो ये अंधविश्वास नहीं है बल्कि ये उनकी आस्था है।

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अमन पाठक बिट्टू
पत्रकार गाज़ीपुर
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