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महादेव की भक्ति में रमे नौ वर्षीय नागा संन्यासी गोपाल गिरी

महादेव की भक्ति में रमे नौ वर्षीय नागा संन्यासी गोपाल गिरी
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कुंभ मेला के संगम की रेती पर एक छोटी सी उम्र में जीवन के सबसे बड़े सत्य की तलाश में जुटे नौ वर्षीय नागा संन्यासी गोपाल गिरी महाराज का नाम इन दिनों खासा चर्चा में है। हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले से आए गोपाल गिरी महाराज महादेव की भक्ति में लीन, अपने शरीर पर भस्म लगाए हुए एक साधक के रूप में लोगों का ध्यान आकर्षित कर रहे हैं। इस आयु में जहां अन्य बच्चे खेलने-कूदने में व्यस्त रहते हैं, वहीं गोपाल गिरी महाराज ने अपना जीवन महादेव की भक्ति और साधना में समर्पित कर दिया है।

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नौ वर्षीय संन्यासी की अनोखी भक्ति यात्रा

गोपाल गिरी के जीवन की यात्रा बेहद अनूठी है। मात्र तीन साल की आयु में उनके माता-पिता ने उन्हें एक नागा संन्यासी के सुपुर्द कर दिया था। यह संन्यास का निर्णय एक परंपरा का हिस्सा था, जो उन्हें एक नए जीवन की ओर ले गया। चंबा के एक साधारण परिवार से आए गोपाल गिरी के जीवन में एक नई राह खुली, जब उनके माता-पिता ने उन्हें अपने परिवार और सांसारिक जीवन से मुक्ति दिलाने का निर्णय लिया।

गोपाल गिरी महाराज का कहना है कि उनके लिए उनके गुरु ही उनके माता-पिता हैं। वह अपने गुरु की सेवा और महादेव की भक्ति में पूर्ण रूप से समर्पित हैं। वह कहते हैं, “गुरु ही हमारे जीवन का मार्गदर्शन करते हैं, उनके चरणों में ही हमें असली सुख और शांति का अनुभव होता है।”

गुरु और गुरु भाइयों के साथ साधना में रमे गोपाल गिरी

गोपाल गिरी का संबंध श्री शंभू पंचदशनाम आवाहन अखाड़े से है, और उनके गुरु थानापति सोमवार गिरी महाराज हैं। वह अपने गुरु भाइयों के साथ कड़ाके की ठंड में निर्वस्त्र रहते हुए शरीर पर भस्म लगाए महादेव की भक्ति में लीन रहते हैं। उनका जीवन पूरी तरह से तपस्या, साधना और प्रभु भक्ति में व्यतीत होता है। उनके लिए सांसारिक सुखों का कोई महत्व नहीं है, क्योंकि वह मानते हैं कि सच्चा सुख केवल भगवान की भक्ति और साधना में है।

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माता-पिता और परिवार से परे, गुरु के साथ ही जीवन का अर्थ

गोपाल गिरी महाराज के बारे में पूछने पर वह कहते हैं, “मेरे लिए गुरु ही मेरे माता-पिता हैं। परिवार से मुझे कोई मतलब नहीं है, क्योंकि मेरा असली परिवार यही है जो इस साधना में मेरे साथ है।” वह अपने जीवन के बारे में ज्यादा बात नहीं करते और बस अपने गुरु की सेवा और भगवान की भक्ति में लीन रहते हैं।

जब इस पर उनके गुरु भाई कमल गिरी से पूछा गया, तो उन्होंने बताया कि गोपाल गिरी महाराज का जन्म बरेली के अकबरपुर गांव में हुआ था और वह अपने चार भाईयों में सबसे छोटे थे। उनके परिवार में प्रतिष्ठित और सम्मानित लोग शामिल हैं। लेकिन उन्होंने परिवार की दुनिया से बाहर निकलकर साधना की ओर कदम बढ़ाया।

छोटे बच्चों को संन्यासी बनाने का महत्व

कमल गिरी महाराज कहते हैं, “यदि किसी परिवार में एक बच्चा संन्यास लेने के लिए जाता है, तो उस परिवार को सात जन्मों का पुण्य मिलता है। इसके साथ ही, उस परिवार की सात पीढ़ियों के पाप समाप्त हो जाते हैं।” यह मान्यता इस संदर्भ में है कि एक बच्चे को दान या सन्न्यास में सौंपने से परिवार को आत्मिक और सांसारिक दोनों ही लाभ होते हैं।

गोपाल गिरी महाराज के माता-पिता ने भी उसी परंपरा का पालन करते हुए अपने छोटे से बेटे को भगवान की भक्ति के मार्ग पर भेज दिया। यह निर्णय एक आत्मिक दृष्टिकोण से लिया गया था, जिसमें वे अपने बेटे के जीवन को एक उच्च उद्देश्य की ओर ले जाना चाहते थे।

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गोपाल गिरी की भक्ति में समर्पण

नौ साल के इस छोटे से बच्चे की भक्ति और साधना किसी भी बड़े साधक से कम नहीं है। वह संगम के रेती पर अन्य साधकों के साथ पूजा, ध्यान और तपस्या करते हैं। उनकी साधना में गहरे समर्पण और शरीर की कड़ी तपस्या का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। वह महादेव की भक्ति में रमे रहते हुए पूरे संसार से परे एक गहरी शांति और संतुलन का अनुभव करते हैं।

गोपाल गिरी महाराज की साधना और तपस्या उन लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत है, जो जीवन में भौतिक सुखों के पीछे भाग रहे हैं। उनका जीवन यह दर्शाता है कि आध्यात्मिक सुख ही असली सुख है, जो आत्मा की शांति और संतोष प्रदान करता है।

संन्यास का वास्तविक अर्थ

संन्यास का अर्थ केवल त्याग नहीं होता, बल्कि यह आध्यात्मिक मार्ग पर चलने की एक प्रक्रिया है, जिसमें मन, शरीर और आत्मा को एक साथ ईश्वर की भक्ति में समर्पित किया जाता है। गोपाल गिरी महाराज ने छोटे से जीवन में यह समझ लिया है कि दुनिया की दौलत और सुख क्षणिक होते हैं, जबकि प्रभु की भक्ति और साधना जीवन का सबसे बड़ा उद्देश्य है।

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