RS Shivmurti

नूर जहां: सुरीली आवाज की मल्लिका और अदाकारी की चमक

नूर जहां: सुरीली आवाज की मल्लिका और अदाकारी की चमक
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आज संगीत और अभिनय की दुनिया में एक ऐसा नाम याद किया जा रहा है, जिसने अपनी सुरीली आवाज और बेमिसाल अदाकारी से लाखों दिलों को छुआ। पाकिस्तान की मशहूर गायिका और अदाकारा नूर जहां की आज पुण्यतिथि है। उनका जलवा न केवल पाकिस्तान में, बल्कि भारत में भी खूब देखने को मिला। स्वर कोकिला लता मंगेशकर जैसी महान गायिका भी उनकी फैन थीं। नूर जहां का जीवन और उनके योगदान आज भी भारतीय और पाकिस्तानी संगीत प्रेमियों के दिलों में जीवित हैं।

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अल्लाह राखी से नूर जहां तक का सफर

21 सितंबर 1926 को लाहौर से लगभग 45 किलोमीटर दूर कसूर नामक स्थान पर नूर जहां का जन्म हुआ। उनका असली नाम अल्लाह राखी वसाई था। नूर जहां को बचपन से ही संगीत का शौक था और उनकी सुरीली आवाज ने उन्हें कम उम्र में ही मशहूर बना दिया। उनका अभिनय और गायकी का सफर तब शुरू हुआ, जब भारत और पाकिस्तान के बीच सरहदें नहीं थीं।

जब अल्लाह राखी बड़ी हुईं, तो उनकी सुरीली आवाज और खूबसूरती ने सभी को मोहित कर दिया। सिनेमा की दुनिया में प्रवेश के बाद वे नूर जहां के नाम से जानी गईं। उनकी गायकी और अभिनय ने उन्हें भारतीय उपमहाद्वीप की सबसे प्रसिद्ध हस्तियों में से एक बना दिया।

10 हजार से अधिक गाने और यादगार अभिनय

नूर जहां ने अपने करियर के दौरान 10,000 से अधिक गाने गाए, जो आज भी संगीत प्रेमियों के दिलों में बसे हुए हैं। उनके गाने हर उम्र और हर वर्ग के लोगों के बीच लोकप्रिय थे। न केवल गायकी, बल्कि अभिनय में भी नूर जहां ने अपना जलवा दिखाया। पाकिस्तान जाने के बाद उन्होंने कई यादगार फिल्मों में काम किया।

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उनकी कुछ प्रमुख फिल्मों में ‘गुलनार’, ‘फतेखान’, ‘लख्ते जिगर’, ‘इंतेजार’, ‘अनारकली’, ‘परदेसियां’, ‘कोयल’ और ‘मिर्जा गालिब’ शामिल हैं। उनके अभिनय ने दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया और उन्हें फिल्मी दुनिया की मल्लिका बना दिया। साल 1963 में उन्होंने अभिनय से संन्यास ले लिया, लेकिन उनकी गायकी का सफर जारी रहा।

लता मंगेशकर और नूर जहां का खास रिश्ता

नूर जहां की लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि स्वर कोकिला लता मंगेशकर भी उनकी बहुत बड़ी प्रशंसक थीं। लता जी ने कई बार यह स्वीकार किया कि नूर जहां उनकी प्रेरणा थीं। लता मंगेशकर ने खाली वक्त में नूर जहां के गाने सुनने की आदत बनाई थी। नूर जहां ने भी लता जी की गायकी को खूब सराहा।

दोनों की यादगार मुलाकात

1947 के बंटवारे के बाद नूर जहां पाकिस्तान चली गईं, लेकिन लता मंगेशकर और नूर जहां के बीच का रिश्ता कभी खत्म नहीं हुआ। स्कार्स ऑफ 1947: रियल पार्टिशन स्टोरीज किताब के अनुसार, लता मंगेशकर एक बार अपनी दोस्त नूर जहां से मिलने पाकिस्तान के बॉर्डर तक पहुंची थीं। वीजा और पासपोर्ट की कमी के कारण लता जी पाकिस्तान नहीं जा सकीं। तब दोनों ने तय किया कि वे नो मेन्स लैंड में मिलेंगी। नूर जहां अपने पति के साथ आईं और यह मुलाकात ऐतिहासिक बन गई।

संगीत और अभिनय के क्षेत्र में योगदान

नूर जहां का नाम आज भी संगीत और अभिनय की दुनिया में प्रेरणा का स्रोत है। उन्होंने न केवल अपने समय के संगीत को समृद्ध किया, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी मिसाल कायम की। उनकी सुरीली आवाज और अदाकारी ने दोनों देशों के सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत किया।

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पाकिस्तान में उनके योगदान

पाकिस्तान में नूर जहां को मलिका-ए-तरन्नुम (संगीत की रानी) के नाम से जाना जाता है। उनके गाए देशभक्ति गीत आज भी पाकिस्तान में सुने और सराहे जाते हैं। 1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान उनके गाए गीतों ने पाकिस्तानी सैनिकों का हौसला बढ़ाया। उनकी गायकी ने न केवल मनोरंजन बल्कि प्रेरणा का भी काम किया।

नूर जहां का आखिरी समय

23 दिसंबर 2000 को नूर जहां ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। लेकिन उनकी गायकी और अदाकारी आज भी लाखों-करोड़ों लोगों के दिलों में जिंदा है। नूर जहां का नाम भारतीय और पाकिस्तानी संगीत और सिनेमा के इतिहास में हमेशा चमकता रहेगा।

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