परीक्षा में फर्जीवाड़े का नया खुलासा
बिहार में एसएससी एमटीएस परीक्षा के दौरान फर्जीवाड़े का मामला लगातार चर्चा में है। पूर्णिया से गिरफ्तार किए गए 35 अभ्यर्थियों से जुड़े इस मामले में चौंकाने वाला तथ्य सामने आया है। इस फर्जीवाड़े की शिकायत दर्ज कराने वाला व्यक्ति खुद फर्जी साबित हुआ। उसने अपनी पहचान आरएल कॉलेज माधवनगर में समाजशास्त्र के प्रोफेसर के रूप में दी थी, लेकिन जांच में पता चला कि वह वास्तव में वहां का प्रोफेसर है ही नहीं।
फर्जी प्रोफेसर सुरेश यादव का पर्दाफाश
जांच के दौरान यह सामने आया कि शिकायतकर्ता सुरेश यादव, जो एसएससी परीक्षा केंद्र का को-ऑर्डिनेटर बताया जा रहा था, असल में सहरसा जिले के सौर बाजार स्थित बरसम गांव का निवासी है। उसने अपनी पहचान आरएल कॉलेज माधवनगर के प्रोफेसर के रूप में दी थी। हालांकि, कॉलेज या विश्वविद्यालय के पास इस संबंध में कोई रिकॉर्ड नहीं मिला। सुरेश यादव को पुलिस अब तलाश कर रही है, लेकिन वह फरार हो चुका है।
कॉलेज प्रशासन की जांच में बड़ा खुलासा
एसएससी परीक्षा केंद्र के को-ऑर्डिनेटर के रूप में अपनी पहचान देने वाले सुरेश यादव के खिलाफ आरएल कॉलेज माधवनगर के प्रिंसिपल कमाल खान ने बड़ा खुलासा किया। उन्होंने सभी स्टाफ को बुलाकर इस व्यक्ति की पहचान की पुष्टि कराई। जांच में यह स्पष्ट हुआ कि सुरेश यादव न तो कॉलेज का प्रोफेसर है, न उसकी कोई नियुक्ति पत्र, न अटेंडेंस रिकॉर्ड और न ही रिलीविंग लेटर है।
1984 से लेकर 2021 तक का फर्जीवाड़ा
सुरेश यादव ने जांच के दौरान 1984 में अपनी अस्थायी नियुक्ति के कुछ दस्तावेज दिखाए। इन दस्तावेजों के अनुसार, कॉलेज की तदर्थ कमेटी ने उसकी अस्थायी नियुक्ति की थी। लेकिन 2006 के बाद से कॉलेज ने उससे कोई सेवा नहीं ली। इसके बावजूद, 2006 से 2021 तक उसने विश्वविद्यालय के परीक्षा विभाग में अवैध रूप से काम किया।
परीक्षा विभाग और विश्वविद्यालय पर सवाल
पूर्णिया विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. पवन कुमार झा ने पुष्टि की कि 2021 तक सुरेश यादव ने परीक्षा विभाग में काम किया और उसे को-ऑर्डिनेटर भी बनाया गया। हालांकि, आरएल कॉलेज के प्रिंसिपल कमाल खान का कहना है कि सुरेश यादव फ्रॉड है। 2006 के बाद से उसका कॉलेज से कोई संबंध नहीं है।
फर्जी एफआईआर दर्ज कराने का मामला
2024 में सुरेश यादव ने एसएससी परीक्षा में फर्जीवाड़े की एफआईआर दर्ज कराई थी। उसने खुद को विश्वविद्यालय से जुड़ा अधिकारी बताया। लेकिन जांच के दौरान स्पष्ट हुआ कि वह न तो कॉलेज का कर्मचारी है और न ही विश्वविद्यालय का।
पुलिस और प्रशासनिक जांच जारी
इस पूरे मामले में पुलिस और प्रशासन जांच कर रही है। सुरेश यादव कैसे 2021 तक परीक्षा विभाग में काम करता रहा और 2024 में कैसे उसने एसएससी परीक्षा में को-ऑर्डिनेटर बनकर एफआईआर दर्ज कराई, यह सवाल गंभीर हैं। इस मामले की गहन जांच के बाद ही पूरे फर्जीवाड़े का सच सामने आएगा।
निष्कर्ष
बिहार की परीक्षा प्रणाली में सामने आया यह मामला प्रशासनिक विफलता की ओर इशारा करता है। यह साफ है कि परीक्षा विभाग और विश्वविद्यालय स्तर पर निगरानी की भारी कमी है। इस प्रकरण से न केवल परीक्षा की शुचिता पर सवाल उठे हैं, बल्कि सिस्टम में सुधार की भी आवश्यकता पर जोर दिया गया है।