गुजरात में लोको पायलट की सूझबूझ से बची 8 शेरों की जान: जंगल और मानव के सह-अस्तित्व की मिसाल

गुजरात में लोको पायलट की सूझबूझ से बची 8 शेरों की जान
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गुजरात के भावनगर जिले में बीते दो दिनों में एक अभूतपूर्व घटना सामने आई, जहां ट्रेन के लोको पायलट की सतर्कता और सूझबूझ से 8 शेरों की जान बचाई गई। यदि लोको पायलट ने सावधानी नहीं बरती होती, तो इन शेरों की जान खतरे में पड़ सकती थी। यह घटना मानव और वन्यजीवों के बीच बढ़ते संघर्ष के बीच एक सकारात्मक उदाहरण पेश करती है, जहां सतर्कता और समय पर निर्णय से बड़ा हादसा टल गया।

लोको पायलट ने कैसे बचाई शेरों की जान

घटना उस समय की है जब ट्रेन भावनगर जिले के पास जंगलों के बीच से गुजर रही थी। ट्रैक पर 8 शेरों का एक झुंड अचानक आ गया। शेर अक्सर जंगलों से भटककर रेलवे ट्रैक पर आ जाते हैं, जिससे उनकी जान को खतरा होता है। लोको पायलट ने ट्रैक पर शेरों को देखते ही इमरजेंसी ब्रेक लगाई और ट्रेन को तुरंत रोक दिया। पायलट की इस सतर्कता के कारण शेरों की जान बच गई। यह न केवल उनके साहस और सतर्कता का उदाहरण है, बल्कि वन्यजीव संरक्षण के प्रति जागरूकता का भी प्रतीक है।

गिर जंगल के आसपास बढ़ती घटनाएं

गुजरात के गिर और आसपास के जंगल शेरों के लिए विश्व प्रसिद्ध हैं। यहां एशियाई शेरों की सबसे बड़ी आबादी रहती है। लेकिन हाल के वर्षों में जंगलों के पास हो रहे विकास कार्यों और रेलवे लाइनों के विस्तार के कारण ऐसी घटनाएं बढ़ी हैं, जहां वन्यजीव भटककर इंसानी बस्तियों या रेलवे ट्रैक पर आ जाते हैं।
वन विभाग के आंकड़ों के अनुसार, हर साल कई शेर रेलवे दुर्घटनाओं का शिकार हो जाते हैं। हालांकि, लोको पायलट की सतर्कता के कारण इस बार एक बड़ी त्रासदी टल गई।

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वन विभाग ने की लोको पायलट की प्रशंसा

इस घटना के बाद वन विभाग ने लोको पायलट की सतर्कता की सराहना की है। विभाग के एक अधिकारी ने कहा, “लोको पायलट की सूझबूझ ने शेरों की जान बचाई है। यह एक सकारात्मक उदाहरण है कि कैसे समय पर सही निर्णय से वन्यजीवों की रक्षा की जा सकती है।” उन्होंने यह भी कहा कि इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए रेलवे और वन विभाग के बीच समन्वय बढ़ाना बेहद जरूरी है।

शेरों के बढ़ते खतरे: क्या हैं समाधान

गिर के जंगल और आसपास के क्षेत्र शेरों का प्राकृतिक आवास हैं, लेकिन यहां लगातार बढ़ते विकास कार्य और मानव गतिविधियों के कारण शेरों को अपने क्षेत्र से बाहर भटकना पड़ता है। रेलवे ट्रैक, हाइवे और औद्योगिक क्षेत्रों के निर्माण ने इस समस्या को और जटिल बना दिया है।
इस समस्या का समाधान खोजने के लिए विशेषज्ञों ने कुछ सुझाव दिए हैं:

  • रेलवे ट्रैक पर अलार्म सिस्टम: रेलवे ट्रैक पर ऐसे सेंसर और अलार्म सिस्टम लगाए जाएं जो वन्यजीवों की उपस्थिति का पता लगाकर लोको पायलट को पहले से सतर्क कर सकें।
  • जंगलों के पास स्पीड लिमिट: जंगलों के आसपास गुजरने वाली ट्रेनों की गति को सीमित किया जाए, ताकि लोको पायलट को समय रहते ट्रेन रोकने का मौका मिल सके।
  • वन्यजीव गलियारों का निर्माण: शेरों और अन्य वन्यजीवों के लिए जंगलों के बीच गलियारे बनाए जाएं, ताकि वे सुरक्षित रूप से अपने क्षेत्र में आ-जा सकें।
  • वन विभाग और रेलवे का समन्वय: वन विभाग और रेलवे के बीच बेहतर समन्वय स्थापित किया जाए, जिससे ऐसी घटनाओं की रोकथाम की जा सके।
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वन्यजीव संरक्षण के लिए बढ़ती जिम्मेदारी

यह घटना हमें याद दिलाती है कि वन्यजीव संरक्षण केवल सरकारी विभागों की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि इसमें हर नागरिक और संस्थान की भागीदारी जरूरी है। लोको पायलट की सतर्कता ने यह साबित कर दिया है कि छोटी-छोटी सावधानियां बड़े बदलाव ला सकती हैं।
पर्यावरणविदों का कहना है कि शेरों के आवास को सुरक्षित रखने के लिए सरकार को तुरंत कदम उठाने की जरूरत है। वन्यजीव संरक्षण के लिए जागरूकता कार्यक्रमों को बढ़ावा देना और स्थानीय समुदायों को शामिल करना समय की मांग है।