उत्तर प्रदेश के कानपुर में एक दिल दहला देने वाली घटना सामने आई, जहां बेटी के अपहरण के 105 दिन बाद भी कार्रवाई न होने से निराश एक बुजुर्ग दंपति ने आत्मदाह करने की कोशिश की। यह घटना शुक्रवार को पुलिस आयुक्त कार्यालय के बाहर हुई। हालांकि, मौके पर मौजूद पुलिसकर्मियों ने उन्हें समय रहते बचा लिया।
बेटी की गुमशुदगी पर पुलिस की निष्क्रियता
बिल्हौर इलाके के रहने वाले राकेश दुबे और उनकी पत्नी ने बताया कि उनकी 22 वर्षीय बेटी आकांक्षा दुबे 31 अगस्त को शिवराजपुर के खरेश्वर मंदिर में जलाभिषेक करने गई थीं। वहां से लौटते समय किसी ने उसे अगवा कर लिया। दंपति ने उस दिन ही बेटी की गुमशुदगी की शिकायत दर्ज कराई, लेकिन 105 दिन बीत जाने के बावजूद पुलिस ने उसे ढूंढने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया।
मुख्यमंत्री कार्यालय तक गुहार, लेकिन कोई सुनवाई नहीं
राकेश दुबे ने बताया कि उन्होंने बेटी की तलाश के लिए पुलिस से बार-बार गुहार लगाई। यहां तक कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री कार्यालय में भी दो बार लिखित आवेदन दिया। लेकिन उनकी शिकायत पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। इस उपेक्षा से निराश होकर उन्होंने पुलिस आयुक्त कार्यालय के बाहर पेट्रोल डालकर आत्मदाह करने की कोशिश की।
पुलिस ने बचाया, जांच का आदेश
आत्मदाह की कोशिश के दौरान मौके पर मौजूद पुलिसकर्मियों ने दंपति को बचा लिया। इसके बाद पुलिस आयुक्तालय ने मामले की गंभीरता को समझते हुए तत्काल जांच के आदेश दिए। सहायक पुलिस आयुक्त (बिल्हौर) सुमित सुधाकर रामटेके को इस मामले की जांच सौंपी गई है। साथ ही, जांच अधिकारी (आईओ) और संबंधित थानों के एसएचओ की भूमिका की भी समीक्षा की जाएगी।
पुलिस की निष्क्रियता से उपजी निराशा
पश्चिम क्षेत्र के अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त (एडीसीपी) विजेंद्र द्विवेदी ने कहा कि दंपति की यह कोशिश पुलिस की निष्क्रियता से उपजी निराशा का परिणाम है। उन्होंने कहा कि इस मामले में अब कार्रवाई तेज की जाएगी। तीन पुलिस थानों के प्रमुखों और जांच अधिकारियों को तत्काल ठोस कदम उठाने के निर्देश दिए गए हैं।
वरिष्ठ अधिकारियों ने दिया भरोसा
इस घटना के बाद वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने दंपति को आश्वासन दिया है कि उनकी बेटी की तलाश प्राथमिकता पर की जाएगी। अधिकारियों ने कहा कि इस मामले में लापरवाही बरतने वाले पुलिसकर्मियों के खिलाफ भी सख्त कार्रवाई की जाएगी।
समाज में उठे सवाल
इस घटना ने समाज और पुलिस व्यवस्था पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं। एक ओर जहां आम नागरिक न्याय की उम्मीद में दर-दर भटक रहे हैं, वहीं दूसरी ओर पुलिस की निष्क्रियता उनकी हताशा को बढ़ा रही है। यह घटना यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या आम जनता के लिए न्याय पाना इतना कठिन हो गया है।
आगे की राह
पुलिस द्वारा मामले में तेज कार्रवाई और जिम्मेदार अधिकारियों पर सख्त कदम उठाने के दावों के बावजूद यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि दंपति की बेटी की खोज में अब क्या प्रगति होती है। यह घटना पुलिस विभाग के लिए एक चेतावनी भी है कि वह नागरिकों की शिकायतों को गंभीरता से लें और तुरंत कार्रवाई करें।
निष्कर्ष:
इस दुखद घटना ने न केवल पुलिस विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि समाज में सुरक्षा और न्याय व्यवस्था की खामियों को भी उजागर किया है। उम्मीद है कि इस मामले में अब दंपति को न्याय मिलेगा और उनकी बेटी सकुशल वापस लौटेगी।