Durga Chalisa Likha Hua | दुर्गा चालीसा लिखा हुआ

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“दुर्गा चालीसा” हिन्दू धर्म में देवी दुर्गा की पूजा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह चालीसा देवी दुर्गा की महिमा और शक्ति का बखान करती है, और भक्तों को उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए मानसिक शांति और शक्ति प्रदान करती है। इस चालीसा को पढ़ने से मनुष्य के सभी संकट दूर होते हैं और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। “दुर्गा चालीसा लिखी हुई” का महत्व इसलिए भी है क्योंकि इसे पढ़ते हुए व्यक्ति देवी के प्रति अपनी श्रद्धा और भक्ति व्यक्त करता है, और साथ ही साथ एक गहरी मानसिक शांति भी महसूस करता है। आइए जानते हैं, इस चालीसा के शब्दों में क्या खास है और इसे कैसे पढ़ने से हमें जीवन में सुख और समृद्धि मिल सकती है।

नमो नमो दुर्गे सुख करनी,नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी।

निरंकार है ज्योति तुम्हारी, तिहूं लोक फैली उजियारी॥

शशि ललाट मुख महाविशाला, नेत्र लाल भृकुटि विकराला।

रूप मातु को अधिक सुहावे, दरश करत जन अति सुख पावे॥

तुम संसार शक्ति लै कीना, पालन हेतु अन्न धन दीना।

अन्नपूर्णा हुई जग पाला, तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥

प्रलयकाल सब नाशन हारी, तुम गौरी शिवशंकर प्यारी।

शिव योगी तुम्हरे गुण गावें, ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥

रूप सरस्वती को तुम धारा, दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा।

धरयो रूप नरसिंह को अम्बा, परगट भई फाड़कर खम्बा॥

रक्षा करि प्रह्लाद बचायो, हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो।

लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं, श्री नारायण अंग समाहीं॥

क्षीरसिन्धु में करत विलासा, दयासिन्धु दीजै मन आसा.

हिंगलाज में तुम्हीं भवानी, महिमा अमित न जात बखानी॥

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मातंगी अरु धूमावति माता, भुवनेश्वरी बगला सुख दाता।

श्री भैरव तारा जग तारिणी, छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥

केहरि वाहन सोह भवानी, लांगुर वीर चलत अगवानी।

कर में खप्पर खड्ग विराजै, जाको देख काल डर भाजै॥

सोहै अस्त्र और त्रिशूला, जाते उठत शत्रु हिय शूला।

नगरकोट में तुम्हीं विराजत, तिहुंलोक में डंका बाजत॥

शुंभ निशुंभ दानव तुम मारे, रक्तबीज शंखन संहारे।

महिषासुर नृप अति अभिमानी, जेहि अघ भार मही अकुलानी॥

रूप कराल कालिका धारा, सेन सहित तुम तिहि संहारा।

परी गाढ़ संतन पर जब जब, भई सहाय मातु तुम तब तब॥

अमरपुरी अरु बासव लोका, तब महिमा सब रहें अशोका।

ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी, तुम्हें सदा पूजें नर-नारी॥

प्रेम भक्ति से जो यश गावें, दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें।

ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई, जन्म-मरण ताकौ छुटि जाई॥

जोगी सुर मुनि कहत पुकारी, योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी।

शंकर आचारज तप कीनो, काम अरु क्रोध जीति सब लीनो॥

निशिदिन ध्यान धरो शंकर को, काहु काल नहिं सुमिरो तुमको।

शक्ति रूप का मरम न पायो, शक्ति गई तब मन पछितायो॥

शरणागत हुई कीर्ति बखानी, जय जय जय जगदम्ब भवानी।

भई प्रसन्न आदि जगदम्बा, दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥

मोको मातु कष्ट अति घेरो, तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो।

आशा तृष्णा निपट सतावें, रिपू मुरख मौही डरपावे॥

शत्रु नाश कीजै महारानी, सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी।

करो कृपा हे मातु दयाला, ऋद्धि-सिद्धि दै करहु निहाला॥

जब लगि जिऊं दया फल पाऊं, तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं।

दुर्गा चालीसा जो कोई गावै, सब सुख भोग परमपद पावै,

देवीदास शरण निज जानी, करहु कृपा जगदम्ब भवानी॥

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॥ इति श्री दुर्गा चालीसा सम्पूर्ण ॥

“दुर्गा चालीसा लिखी हुई” एक शक्तिशाली मंत्र की तरह है, जो हमें अपने जीवन की कठिनाइयों से जूझने के लिए आंतरिक शक्ति प्रदान करती है। इसे नियमित रूप से पढ़ने से न सिर्फ शारीरिक और मानसिक शांति मिलती है, बल्कि देवी दुर्गा की अनमोल कृपा भी मिलती है। जब हम इस चालीसा को श्रद्धा और विश्वास के साथ पढ़ते हैं, तो हमारे जीवन में हर मुश्किल आसान हो जाती है और हमें हर मोड़ पर देवी की विशेष आशीर्वाद की अनुभूति होती है। तो क्यों न इसे अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाकर हम अपनी जीवन यात्रा को और भी सुखमय और समृद्ध बनाएं!