चुनाव आयोग के बहाने कुचक्र रच रही भाजपा, आरोपों पर सांसद वीरेंद्र सिंह की प्रतिक्रिया

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उत्तर प्रदेश में होने वाले आगामी उप चुनावों को लेकर भाजपा और समाजवादी पार्टी (सपा) के बीच आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति तेज हो गई है। चंदौली के सपा सांसद वीरेंद्र सिंह ने चुनाव आयोग द्वारा उप चुनाव की तिथियां बदलने के फैसले पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उनका कहना है कि भाजपा हार के डर से चुनावी तिथियां बदलवा रही है और चुनाव आयोग पर दबाव बना रही है।

सपा सांसद वीरेंद्र सिंह ने आरोप लगाया कि भाजपा उप चुनाव में अपनी हार के डर से नए-नए हथकंडे अपना रही है। उन्होंने सवाल उठाया कि चुनाव आयोग को पहले ही इन पर्वों (जैसे कि कार्तिक पूर्णिमा, देव दीपावली और अन्य धार्मिक त्योहारों) की जानकारी थी, तो फिर क्यों अब तिथियां बदलने का फैसला लिया गया? उनका यह भी कहना था कि चुनाव आयोग सरकार के इशारे पर काम कर रहा है और इसे पूरी तरह से निष्पक्ष नहीं कहा जा सकता।

तिथियां में परिवर्तन की वजह क्या थी?

चुनाव आयोग ने 13 नवंबर को प्रस्तावित मतदान की तिथि को बढ़ाकर 20 नवंबर करने का निर्णय लिया। चुनाव आयोग का कहना था कि यह निर्णय राजनीतिक दलों की ओर से की गई एक आम सहमति पर आधारित था। कई राजनीतिक दलों ने इस बात की चिंता जताई थी कि कार्तिक पूर्णिमा, देव दीपावली और अन्य प्रमुख त्योहारों के कारण मतदान में हिस्सा लेने वाले लोगों की संख्या प्रभावित हो सकती है।

इस संदर्भ में चुनाव आयोग ने यह स्पष्ट किया कि तिथियों में बदलाव से किसी भी पार्टी को लाभ या हानि नहीं होगी, बल्कि यह चुनाव प्रक्रिया को और अधिक निष्पक्ष और सटीक बनाने के लिए किया गया है। हालांकि, समाजवादी पार्टी इस निर्णय को लेकर असहमत है और इसे चुनावी रणनीति का हिस्सा मान रही है।

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भा.ज.पा. और सपा के बीच आरोपों का दौर

चुनाव आयोग के फैसले के बाद भाजपा ने अपनी स्थिति को स्पष्ट करते हुए कहा कि वह किसी भी तिथि परिवर्तन के पक्ष में नहीं थी, और यह केवल चुनाव आयोग का निर्णय था। भाजपा का कहना है कि पार्टी किसी भी चुनावी स्थिति से निपटने के लिए तैयार है और वह चुनावी परिणामों से घबराई नहीं है। वहीं, सपा ने भाजपा पर आरोप लगाया है कि वह उप चुनाव में हार के डर से इस तरह के तिकड़म कर रही है, ताकि चुनाव प्रक्रिया को प्रभावित किया जा सके।

समाजवादी पार्टी के नेता वीरेंद्र सिंह ने कहा कि यदि भाजपा का डर सही नहीं होता, तो वह इस तरह के ‘हथकंडों’ का सहारा नहीं लेती। उन्होंने यह भी कहा कि चुनाव आयोग को बिना किसी दबाव के अपनी निर्णय प्रक्रिया में स्वतंत्रता रखनी चाहिए, ताकि जनता का विश्वास बनाए रखा जा सके।

निष्कर्ष

चुनाव आयोग का तिथियों में बदलाव का निर्णय अब एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन चुका है। जहां भाजपा इसे एक सामान्य प्रशासनिक निर्णय मान रही है, वहीं सपा इसे भाजपा के डर और उसकी रणनीति का हिस्सा मानती है। इस राजनीतिक विवाद के बीच, उत्तर प्रदेश के उप चुनाव की तिथियों में बदलाव को लेकर सपा और भाजपा के बीच मचा घमासान अब और भी गहरा गया है। आगामी दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि यह मुद्दा चुनावी परिणामों पर कितना असर डालता है।