वाराणसी। सर्दियों की दस्तक के साथ साइबेरियन पक्षियों के काशी पहुंचने का सिलसिला शुरू हो गया है। ठंड बढ़ने के साथ ही पक्षियों की संख्या और बढ़ेगी। साइबेरियन पक्षी गंगा की लहरों पर कलरव करते हैं। सैलानियों के लिए यह नजारा आकर्षित करने वाला होता है। सैलानी प्रवासी पक्षियों को ब्रेड, नमकीन और तमाम तरह की चीजें खिलाते हैं। फरवरी के अंत तक तापमान बढ़ने के साथ ही प्रवासी पक्षी वापस लौटने लगते हैं। आमतौर पर साइबेरियन पक्षी अक्टूबर में गंगा किनारे घोसला बना लेते हैं, लेकिन इस बार देर से आए हैं। नवंबर के मध्य से ही साइबेरियन पक्षियों के वाराणसी पहुंचने का सिलसिला शुरू हो गया। प्रवासी पक्षी गंगा किनारे अपना ठिकाना बनाते हैं। घाटों पर आने वाले सैलानियों व काशीवासियों को गंगा की लहरों के बीच इनका कलरव काफी आकर्षित करता है बीएचयू के विज्ञान संकाय की पूर्व प्रमुख प्रो. चंदना हलधऱ ने बताया कि पृथ्वी के ध्रुवों व मध्य अक्षांशों के इलाकों के बीच मौसम व जलवायु में बहुत अधिक अंतर देखने को मिलता है। इस अंतर की वजह से ही उत्तरी ध्रुव के पास रहने वाले पक्षी सर्दी में अपना ठिकाना बदल लेते हैं और निकले अक्षांश वाले इलाकों का रुख कर लेते हैं। इन इलाकों में उनके अनुकूल कम सर्दी पड़ती है। इसलिए भारत के मैदानी नदी व झीलों के पास सर्दी के दौरान बहुत सारे पक्षी दिखते हैं। यूक्रेन वार के बाद घटी संख्या
यूक्रेन व रूस के मध्य साइबेरिया में ही ये पक्षी पाए जाते हैं। सर्दियों के मौसम में प्रजनन के लिए ठिकाना बदलते हैं। खासतौर से वाराणसी में बड़ी संख्या में ये पक्षी पहुंचते हैं। इन्हें लोग नमकीन, ब्रेड आदि खिलाते हैं। प्रो. हलधर बताती हैं कि साइबेरियन पक्षियों का मुख्य भोजन मछली होता है। उन्हें ब्रेड और नमकीन खाने से उन्हें डायरिया होता है। इससे अधिक समय तक जीवित नहीं रह पाते हैं।