राम रक्षा स्तोत्र – महत्व, लाभ और विधि

राम रक्षा स्तोत्र
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श्रीराम भक्तों के लिए राम रक्षा स्तोत्र एक अत्यंत प्रभावशाली और दिव्य स्तोत्र है। यह स्तोत्र भगवान श्रीराम की कृपा प्राप्त करने और सभी प्रकार के संकटों से रक्षा के लिए अत्यंत प्रभावी माना जाता है। इसकी रचना ऋषि बुधकौशिक द्वारा की गई थी और इसमें श्रीराम के विभिन्न नामों और उनकी महिमा का वर्णन किया गया है। जो भक्त नित्य श्रद्धा और भक्ति के साथ इस स्तोत्र का पाठ करते हैं, उन्हें असीम शांति और भगवान श्रीराम का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस लेख में हम राम रक्षा स्तोत्र के पाठ की विधि, इसके लाभ और इसके महत्व पर विस्तृत चर्चा करेंगे।

Ram Raksha Stotra


॥विनियोग:॥

अस्य श्रीरामरक्षास्त्रोतमन्त्रस्य बुधकौशिक ऋषिः।
श्री सीतारामचंद्रो देवता।
अनुष्टुप छंदः। सीता शक्तिः,
श्रीमान हनुमान कीलकम।
श्री सीतारामचंद्रप्रीत्यर्थे रामरक्षास्त्रोतजपे विनियोगः॥

॥अथ ध्यानम॥

ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्धपद्मासनस्थं,
पीतं वासो वसानं नवकमल दलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम्॥

वामांकारूढ़ सीता मुख कमल मिलल्लोचनं नीरदाभं,
नाना लंका रदीप्तं दधत मुरुजटा मण्डलं रामचन्द्रम्॥

॥स्तोत्रम॥

चरितं रघुनाथस्य शतकोटिप्रविस्तरम्,
एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम् ॥1॥

ध्यात्वा नीलोत्पलश्याम रामं राजीवलोचनम,
जानकी लक्ष्मणोपेतं जटामुकुटमण्डितम ॥2॥

सासितूण – धनुर्बाणपाणिं नक्तंचरान्तकम,
स्वलीलया जगत्त्रातुमाविर्भूतमजं विभुम ॥3॥

रामरक्षां पठेत प्राज्ञ: पापघ्नीं सर्वकामदाम,
शिरो में राघवं पातु भालं दशरथात्मज: ॥4॥

कौसल्येयो दृशौ पातु विश्वामित्रप्रिय: श्रुती,
घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सल: ॥5॥

जिव्हां विद्यानिधि पातु कण्ठं भरतवन्दित:,
स्कन्धौ दिव्यायुध: पातु भुजौ भग्नेशकार्मुक: ॥6॥

करौ सीतापति: पातु हृदयं जामदग्न्यजित,
मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रय: ॥7॥

सुग्रीवेश: कटी पातु सक्थिनी हनुत्मप्रभु:,
ऊरू रघूत्तम: पातु रक्ष:कुलविनाशकृत ॥8॥

जानुनी सेतकृत्पातु जंघे दशमुखान्तक:,
पादौ विभीषणश्रीद: पातु रामोsखिलं वपु: ॥9॥

एतां रामबलोपेतां रक्षां य: सुकृती पठेत,
स चिरायु: सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत ॥10॥

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पातालभूतलव्योमचारिण श्छद्मचारिण:,
न द्रष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभि: ॥11॥

रामेति रामभद्रेति रामचन्द्रेति वा स्मरन,
नरो न लिप्यते पापैर्भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति ॥12॥

जगज्जैत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम,
य: कण्ठे धारयेत्तस्य करस्था: सर्वसिद्धय: ॥13॥

वज्रपंजरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत,
अव्याहताज्ञ: सर्वत्र लभते जयमंगलम ॥14॥

आदिष्टवान्यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हर:,
तथा लिखितवान्प्रात: प्रबुद्धो बुधकौशिक: ॥15॥

आराम: कल्पवृक्षाणां विराम: सकलापदाम,
अभिरामस्त्रिलोकानां राम: श्रीमान्स न: प्रभु: ॥16॥

तरुणौ रूपसम्पन्नौ सुकुमारौ महाबलौ,
पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ ॥17॥

फलमूलाशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ,
पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ ॥18॥

शरण्यौ सर्वसत्त्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम,
रक्ष: कुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघूत्तमौ ॥ 9॥

आत्तसज्जधनुषाविषुस्पृशावक्षयाशुगनिषंगसंगिनौ,
रक्षणाय मम रामलक्ष्मणावग्रत: पथि सदैव गच्छताम ॥20॥

सन्नद्ध: कवची खड़्गी चापबाणधरो युवा,
गच्छन्मनोरथान्नश्च राम: पातु सलक्ष्मण: ॥21॥

रामो दाशरथि: शूरो लक्ष्मणानुचरो बली,
काकुत्स्थ: पुरुष: पूर्ण: कौसल्लेयो रघूत्तम: ॥22॥

वेदान्तवेद्यो यज्ञेश: पुराणपुरुषोत्तम:,
जानकीवल्ल्भ: श्रीमानप्रमेयपराक्रम: ॥23॥

इत्येतानि जपन्नित्यं मद्भक्त: श्रद्धयान्वित:,
अश्वमेधाधिकं पुण्यं सम्प्राप्नोति न संशय: ॥24॥

रामं दूर्वादलश्यामं पद्माक्षं पीतवाससम,
स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणो नरा: ॥25॥

रामं लक्ष्मणपूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुंदरं,
काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम ॥26॥

राजेन्द्रं सत्यसन्धं दशरथतनयं श्यामलं शान्तमूर्ति,
वन्दे लोकाभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम ॥27॥

रामाय रामभद्राय रामचन्द्राय वेधसे,
रघुनाथय नाथाय सीताया: पतये नम: ॥28॥

श्रीराम राम रघुनन्दन राम राम श्रीराम राम भरताग्रज राम राम,
श्रीराम राम रणकर्कश राम राम श्रीराम राम शरणं भव राम राम ॥29॥

श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि श्रीरामचन्द्रवरणौ वचसा गृणामि,
श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ॥30॥

माता रामो मत्पिता रामचन्द्र: स्वामी रामो मत्सखा रामचन्द्र:,
सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालुर्नान्यं जाने नैव जाने न जाने ॥31॥

दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे च जनकात्मजा,
पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनंदनम ॥32॥

लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्र रघुवंशनाथम,
कारुण्यरुपं करुणाकरं तं श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये ॥33॥

मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम,
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ॥34॥

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कूजन्तं रामरामेति मधुरं मधुराक्षरम,
आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम ॥35॥

आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसम्पदाम,
लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम ॥36॥

भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसम्पदाम,
तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम ॥37॥

रामो राजमणि: सदा विजयते रामं रमेशं भजे,
रामेणाभिहता निशाचरचमू, रामाय तस्मै नम: ॥38॥

रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोsस्म्यहं,
रामे चित्तलय: सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर ॥39॥

राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे,
सहस्त्र नाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥40॥

राम रक्षा स्तोत्र एक अद्भुत स्तोत्र है, जो श्रीराम भक्तों को सभी प्रकार की बाधाओं से बचाता है और उन्हें आत्मिक शांति प्रदान करता है। जो भी भक्त सच्चे मन से इस स्तोत्र का पाठ करता है, उसे भगवान श्रीराम की असीम कृपा प्राप्त होती है। यदि आप अपने जीवन में श्रीराम का आशीर्वाद चाहते हैं, तो नियमित रूप से राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करें और अपने जीवन को सुख-समृद्धि से भरपूर बनाएं। साथ ही, रामायण पाठ, सुंदरकांड, हनुमान चालीसा और अद्भुत राम स्तुति का पाठ भी करें, जिससे आपकी भक्ति और भी प्रगाढ़ होगी।

राम रक्षा स्तोत्र के लाभ


  • सभी प्रकार के भय से मुक्ति – इस स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति के मन से सभी प्रकार के भय समाप्त हो जाते हैं।
  • नकारात्मक ऊर्जा से रक्षा – राम रक्षा स्तोत्र के नियमित पाठ से व्यक्ति बुरी शक्तियों और नकारात्मक ऊर्जा से बचा रहता है।
  • आध्यात्मिक उन्नति – यह स्तोत्र व्यक्ति को भक्ति और आध्यात्मिक उन्नति के मार्ग पर ले जाता है।
  • शत्रु बाधा से मुक्ति – जो व्यक्ति इस स्तोत्र का पाठ करता है, उसे शत्रुओं से किसी भी प्रकार की हानि नहीं होती।
  • स्वास्थ्य लाभ – यह स्तोत्र मानसिक और शारीरिक शांति प्रदान करता है तथा रोगों से रक्षा करता है।
  • कर्ज और आर्थिक संकट से मुक्ति – श्रीराम की कृपा से आर्थिक स्थिति मजबूत होती है और कर्ज से छुटकारा मिलता है।
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राम रक्षा स्तोत्र पाठ की विधि

  • स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें – पाठ करने से पहले स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें।
  • श्रीराम जी की मूर्ति या चित्र के सामने बैठें – एक पवित्र स्थान पर बैठकर श्रीराम जी की मूर्ति या चित्र के सामने दीप जलाएं।
  • शुद्ध उच्चारण के साथ पाठ करें – पूरे मन और श्रद्धा से राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करें।
  • प्रसाद अर्पित करें – पाठ के बाद श्रीराम जी को तुलसी दल और मिठाई अर्पित करें।
  • राम नाम का जप करें – पाठ के बाद “श्रीराम जय राम जय जय राम” मंत्र का जप करें।
  • नियमित रूप से पाठ करें – इस स्तोत्र का नित्य पाठ करने से जीवन में सुख-शांति बनी रहती है।