दुर्गा चालीसा देवी दुर्गा की उपासना करने का एक प्रभावशाली और सरल तरीका है। यह चालीसा माँ दुर्गा की महिमा का गान करती है और भक्तों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाती है। इस चालीसे के 40 श्लोकों में देवी दुर्गा की शक्ति, रूप और उनके अद्वितीय गुणों का वर्णन है। जब भक्त श्रद्धा और भाव से दुर्गा चालीसा का पाठ करते हैं, तो माता दुर्गा उनके सभी कष्टों को दूर करती हैं और आशीर्वाद देती हैं।
दुर्गा चालीसा
नमो नमो दुर्गे सुख करनी,
नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी।
निरंकार है ज्योति तुम्हारी,
तिहूं लोक फैली उजियारी।
शशि ललाट मुख महाविशाला,
नेत्र लाल भृकुटि विकराला।
रूप मातु को अधिक सुहावे,
दरश करत जन अति सुख पावे।
तुम संसार शक्ति लै कीना,
पालन हेतु अन्न धन दीना।
अन्नपूर्णा हुई जग पाला,
तुम ही आदि सुन्दरी बाला।
प्रलयकाल सब नाशन हारी,
तुम गौरी शिवशंकर प्यारी।
शिव योगी तुम्हरे गुण गावें,
ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें।
रूप सरस्वती को तुम धारा,
दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा।
धरयो रूप नरसिंह को अम्बा,
परगट भई फाड़कर खम्बा।
रक्षा करि प्रह्लाद बचायो,
हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो।
लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं,
श्री नारायण अंग समाहीं।
क्षीरसिन्धु में करत विलासा,
दयासिन्धु दीजै मन आसा।
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी,
महिमा अमित न जात बखानी।
मातंगी अरु धूमावति माता,
भुवनेश्वरी बगला सुख दाता।
श्री भैरव तारा जग तारिणी,
छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी।
केहरि वाहन सोह भवानी,
लांगुर वीर चलत अगवानी।
कर में खप्पर खड्ग विराजै,
जाको देख काल डर भाजै।
सोहै अस्त्र और त्रिशूला,
जाते उठत शत्रु हिय शूला।
नगरकोट में तुम्हीं विराजत,
तिहुंलोक में डंका बाजत।
शुंभ निशुंभ दानव तुम मारे,
रक्तबीज शंखन संहारे।
महिषासुर नृप अति अभिमानी,
जेहि अघ भार मही अकुलानी।
रूप कराल कालिका धारा,
सेन सहित तुम तिहि संहारा।
परी गाढ़ संतन पर जब जब,
भई सहाय मातु तुम तब तब.
अमरपुरी अरु बासव लोका,
तब महिमा सब रहें अशोका।
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी,
तुम्हें सदा पूजें नर-नारी।
प्रेम भक्ति से जो यश गावें,
दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें।
ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई,
जन्म-मरण ताकौ छुटि जाई।
जोगी सुर मुनि कहत पुकारी,
योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी।
शंकर आचारज तप कीनो,
काम अरु क्रोध जीति सब लीनो।
निशिदिन ध्यान धरो शंकर को,
काहु काल नहिं सुमिरो तुमको।
शक्ति रूप का मरम न पायो,
शक्ति गई तब मन पछितायो।
शरणागत हुई कीर्ति बखानी,
जय जय जय जगदम्ब भवानी।
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा,
दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा।
मोको मातु कष्ट अति घेरो,
तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो।
आशा तृष्णा निपट सतावें,
रिपू मुरख मौही डरपावे।
शत्रु नाश कीजै महारानी,
सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी।
करो कृपा हे मातु दयाला,
ऋद्धि-सिद्धि दै करहु निहाला।
जब लगि जिऊं दया फल पाऊं,
तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं।
दुर्गा चालीसा जो कोई गावै,
सब सुख भोग परमपद पावै।
देवीदास शरण निज जानी,
करहु कृपा जगदम्ब भवानी।
दुर्गा चालीसा के नियमित पाठ से भक्तों को जीवन में सुख, समृद्धि और शांति की प्राप्ति होती है। देवी दुर्गा की उपासना करने से उनकी कृपा हम पर सदैव बनी रहती है। इस चालीसा के माध्यम से आप अपने जीवन में स्थिरता, शक्ति और आशीर्वाद का अनुभव कर सकते हैं। अन्य देवी स्तोत्रों जैसे दुर्गा स्तोत्रम्, अर्गला स्तोत्र और महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र का पाठ भी आपके जीवन को आशीर्वादित कर सकता है।
दुर्गा चालीसा पाठ विधि
- शुद्धता और स्वच्छता: दुर्गा चालीसा का पाठ करते समय शरीर और स्थान की शुद्धता का ध्यान रखें।
- स्नान और पूजा: सुबह स्नान कर सफेद या लाल रंग के वस्त्र पहनें, और पूजा स्थान को गंगाजल से शुद्ध करें।
- मंत्रोच्चारण: ध्यानपूर्वक देवी दुर्गा का ध्यान करते हुए चालीसा का उच्चारण करें।
- शांति से पढ़ें: चालीसा को शांति और ध्यान से पढ़ें, विशेष रूप से हर श्लोक का अर्थ समझते हुए।
- प्रसाद अर्पित करें: पाठ के अंत में देवी दुर्गा को नैवेद्य अर्पित करें और उनका धन्यवाद करें।
दुर्गा चालीसा के लाभ
- संकटों का निवारण: दुर्गा चालीसा का नियमित पाठ जीवन के सभी संकटों और समस्याओं को समाप्त करता है।
- सुख-शांति की प्राप्ति: इस पाठ से मानसिक शांति, सुख और समृद्धि मिलती है।
- शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य: यह चालीसा शरीर और मस्तिष्क दोनों को ताजगी प्रदान करती है।
- आध्यात्मिक उन्नति: भक्त की आध्यात्मिक प्रगति में मदद करती है और देवी की कृपा प्राप्त होती है।
- रक्षा और संरक्षण: जीवन में किसी भी प्रकार की विपत्तियों और असुरक्षा से रक्षा करती है।