बिहार में हो रहे भूमि सर्वे ने कई परिवारों में तनाव पैदा कर दिया है। खासतौर से वे मामले जहाँ बेटियों का ससुराल में बस जाना और उनका संपत्ति में हिस्सा न लेना मुद्दा बन रहा है। कानूनी रूप से लड़का-लड़की दोनों का संपत्ति में समान अधिकार होता है, लेकिन जब जमीन की कीमत बढ़ने लगती है, तब पारिवारिक रिश्तों में दरारें आनी शुरू हो जाती हैं। आइए देखते हैं ऐसे ही कुछ मामलों को, जो आजकल बिहार में हो रहे भूमि सर्वे में उभर कर सामने आ रहे हैं।
जमीन पर सभी का समान अधिकार, फिर भी बढ़ रहा है तनाव
भारतीय कानून के अनुसार, लड़के और लड़कियों को संपत्ति में समान अधिकार होता है। अगर पिता या दादा की संपत्ति में सभी संतान बराबर के हिस्सेदार हैं, तो जिसे अपना हिस्सा नहीं चाहिए, उसे NOC (नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट) पर साइन कर उसे देना होता है। लेकिन यह प्रक्रिया उतनी आसान नहीं है जितनी दिखती है। विशेष रूप से तब, जब बहन की शादी हो चुकी हो और वो अपने ससुराल में बस चुकी हो। अब भाई जब जमीन के दस्तावेज अपने नाम कराना चाहता है, तो बहन तैयार हो जाती है, लेकिन बहनोई और भतीजे अड़चन डालने लगते हैं।
पहला मामला: बहन तैयार, पर बहनोई को मंजूर नहीं
मुजफ्फरपुर में एक 62 साल के व्यक्ति अपनी इकलौती बहन के पास जमीन के कागजात लेकर पहुंचे। बहन ने खुशी-खुशी कहा कि “मुझे हिस्सा नहीं चाहिए, तुम चिंता मत करो।” लेकिन जब बात बहन के पति और बेटे तक पहुँची, तो उन्होंने ऐसा करने से साफ मना कर दिया। इस मामूली से विवाद ने बड़ा रूप ले लिया, और बहनोई ने अपने साले को कोर्ट में घसीटने की धमकी तक दे दी। यह मामला तब और पेचीदा हो गया जब साले ने अपनी यादें ताजा कीं कि कैसे उसने बेरोजगार बहनोई की मदद की थी।
पारिवारिक मदद और कड़वी यादें
उस व्यक्ति ने अपने बहनोई के व्यवसाय के लिए लाखों रुपये का निवेश किया था, और अपने भतीजे की इंजीनियरिंग की पढ़ाई की फीस भी दी थी। इस सबके बाद जब उन्होंने जमीन में हिस्सा माँगा, तो भाई का दिल टूट गया। वह इस बात से बेहद दुखी था कि उनके पिता ने बहन की शादी में अपनी काफी जमीन बेची थी और माँ के गहने तक दे दिए थे, जिनकी आज लाखों की कीमत है।
दूसरा मामला: ममेरे भाई पर मामा को विश्वास नहीं
दूसरा मामला मुजफ्फरपुर के एक पॉश इलाके से है, जहां डेढ़ कट्ठा जमीन पर बना तीन मंजिला मकान एक विवाद का केंद्र बन गया। यह जमीन मामा के नाम पर है, लेकिन उनके स्वास्थ्य की हालत अब ठीक नहीं रहती। मामा ने अपने भतीजे से कहा, “बउआ, मेरी तबीयत अब ठीक नहीं रहती, पता नहीं कब भगवान का बुलावा आ जाए। यह बात अब तक सिर्फ तुम और तुम्हारे पिता जानते थे। अब तुम इसे अपने नाम कर लो, क्योंकि मुझे नहीं पता कि तुम्हारा ममेरा भाई क्या करेगा।”
मामा की आखिरी इच्छा
मामा ने आगे कहा, “मैं नहीं चाहता कि मैं अपनी बहन का कर्ज लेकर मरूँ। इसलिए मैं चाहता हूँ कि तुम इस जमीन को जल्द से जल्द अपने नाम करा लो।” उन्होंने भतीजे से यह भी कहा कि अब किसी और को इस बारे में न बताएं और जल्द से जल्द सभी कागजात जैसे – khata khasra bihar, bihar dakhil kharij, bhu naksha bihar, khatiyan आदि तैयार करवा लें। यह मामला भावनात्मक रूप से बहुत जटिल हो गया क्योंकि मामा अपने अंतिम दिनों में अपनी बहन का कर्ज चुकाना चाहते थे, लेकिन उन्हें अपने बेटे पर ही विश्वास नहीं था।
संपत्ति के बढ़ते दाम और विवाद
इन दोनों मामलों में एक बात साफ नजर आती है – जमीन का स्थान और उसकी कीमत। खासकर वे जमीनें जो प्रमुख सड़कों, चौक-चौराहों के पास होती हैं, उनकी कीमत आज आसमान छू रही है। जब जमीन की कीमत बढ़ जाती है, तब रिश्तों में दरारें भी आने लगती हैं। बहनें जो पहले जमीन में हिस्सा नहीं लेना चाहती थीं, उनके पतियों और बच्चों की मांगें सामने आने लगती हैं। यह विवाद सिर्फ पारिवारिक मुद्दा नहीं रह जाता, बल्कि आर्थिक महत्व का हो जाता है।
बहनों की संपत्ति में अधिकार: कानून और हकीकत
कानून कहता है कि बेटे और बेटियों का संपत्ति में समान अधिकार है। चाहे लड़की शादी करके ससुराल चली गई हो, उसका अधिकार समाप्त नहीं होता। लेकिन व्यवहारिक रूप में, जब जमीन की कीमत बढ़ती है और उसकी कानूनी प्रक्रिया शुरू होती है, तो बहनें अक्सर हिस्सा छोड़ने को तैयार हो जाती हैं। मगर उनके परिवार के अन्य सदस्यों, खासतौर से बहनोई और बच्चों की मांगें शुरू हो जाती हैं, जिससे विवाद उत्पन्न होता है।
समाधान की राह: कैसे सुलझें ऐसे विवाद
ऐसे मामलों में विवाद को सुलझाने का सबसे अच्छा तरीका है – पारिवारिक बातचीत और आपसी समझौता। भाइयों और बहनों को एक साथ बैठकर अपनी प्राथमिकताओं पर विचार करना चाहिए। अगर बहनें जमीन में हिस्सा नहीं लेना चाहतीं, तो उन्हें यह बात अपने परिवार के सभी सदस्यों से स्पष्ट रूप से कहनी चाहिए। वहीं, भाइयों को भी अपनी बहनों के योगदान और पारिवारिक संबंधों का सम्मान करना चाहिए।
कानूनी सहायता
अगर विवाद बढ़ जाता है और पारिवारिक बातचीत से हल नहीं निकलता, तो कानूनी सहायता लेना जरूरी हो सकता है। वकील की मदद से ऐसे मामलों को सही दिशा दी जा सकती है। हालांकि, कोर्ट में जाने से पहले हमेशा कोशिश करनी चाहिए कि आपसी सहमति से मामला सुलझ जाए, ताकि पारिवारिक संबंध न बिगड़ें।