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संभल के बाद अब बरेली में मंदिर विवाद

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संभल के मंदिर विवाद के बाद अब बरेली में 250 साल पुराने मंदिर पर कब्जे का मामला सामने आया है। कटघर मोहल्ले में स्थित इस मंदिर को लेकर स्थानीय लोगों ने कब्जे का आरोप लगाया है। यह विवाद उस समय शुरू हुआ जब मंदिर के प्राचीन इतिहास और वर्तमान स्थिति पर सवाल उठाए गए।

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मंदिर का ऐतिहासिक महत्व

कटघर निवासी नरेंद्र सिंह ने दावा किया है कि उनके पूर्वजों ने 250 साल पहले गंगा महारानी मंदिर का निर्माण कराया था। इस मंदिर को वर्ष 1905 में दस्तावेजों में दर्ज किया गया। वर्ष 1950 तक इस मंदिर में पूजा-अर्चना नियमित रूप से होती थी। मंदिर के ऐतिहासिक महत्व के कारण यह क्षेत्र में एक पवित्र स्थल के रूप में जाना जाता था।

विवाद की शुरुआत

मंदिर के विवाद की शुरुआत तब हुई जब तत्कालीन पुजारी ने मंदिर का एक कमरा किराए पर दिया। किराए पर दिए गए इस कमरे में एक समिति ने दूसरे समुदाय के व्यक्ति को चौकीदार के रूप में नियुक्त कर दिया। समय के साथ, दूसरे समुदाय की जनसंख्या बढ़ने लगी, जिससे मंदिर में पूजा-अर्चना बंद हो गई।

स्थानीय लोगों का आरोप

नरेंद्र सिंह और अन्य स्थानीय लोगों का आरोप है कि मंदिर पर कब्जा किया गया है और इसके धार्मिक उपयोग को रोक दिया गया है। उनका कहना है कि मंदिर में पूजा-अर्चना दोबारा शुरू होनी चाहिए और इसे उसके मूल उद्देश्य के लिए बहाल किया जाना चाहिए।

दस्तावेजों में मंदिर की स्थिति

स्थानीय निवासियों के अनुसार, वर्ष 1905 के दस्तावेजों में गंगा महारानी मंदिर को स्पष्ट रूप से दर्ज किया गया था। हालांकि, वर्तमान में यह स्पष्ट नहीं है कि मंदिर की कानूनी स्थिति क्या है। इस मामले में दस्तावेजों की जांच और सत्यापन की आवश्यकता है।

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संभल के मंदिर विवाद से समानता

इस मामले की तुलना संभल के मंदिर विवाद से की जा रही है, जहां एक प्राचीन मंदिर को लेकर दो समुदायों के बीच विवाद सामने आया था। बरेली का यह मामला भी धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान से जुड़ा हुआ है, जिससे स्थानीय लोगों में नाराजगी है।

प्रशासन की भूमिका

मंदिर विवाद को लेकर प्रशासन पर दबाव बढ़ रहा है। स्थानीय निवासियों ने प्रशासन से इस मामले की निष्पक्ष जांच और उचित कार्रवाई की मांग की है। प्रशासन की ओर से अभी तक इस मामले में कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया गया है।

समाधान की संभावनाएं

मंदिर विवाद को सुलझाने के लिए दोनों पक्षों के साथ बातचीत और कानूनी प्रक्रिया का सहारा लिया जा सकता है। स्थानीय निवासियों का कहना है कि मंदिर का पुनर्निर्माण और उसमें पूजा-अर्चना की शुरुआत ही इस विवाद का समाधान है।

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