


सद्गुरु कबीर साहेब के प्राकट्यधाम लहरतारा, वाराणसी में त्रिदिवसीय सद्गुरु कबीर प्राकट्य महोत्सव का आयोजन किया गया। इस महोत्सव का उद्घाटन सद्गुरु कबीर प्राकट्य धाम लहरतारा तालाब एवं स्मारक विकास समिति के प्रमुख पंथ श्री हजूर अर्धनाम साहेब द्वारा किया गया।

पहले दिन के प्रथम सत्र की शुरुआत कबीरपंथ की परंपरा के अनुसार सद्गुरु कबीर साहेब महामंत्र सत्यनाम से अंकित ध्वजा पूजन और निशान पूजा से हुई। इसके बाद ध्वजारोहण, सद्गुरु कबीर साहेब की मूर्ति पर माल्यार्पण और पूजा-अर्चना की गई। इसके बाद संस्था के बाल संतों द्वारा स्वागत भजन प्रस्तुत किया गया। आयोजन समिति के सदस्यों और भक्तों द्वारा पंथश्री हजूर साहेब, धर्माधिकारी साहेब, और उपस्थित संत-महंतों का पुष्प हार से स्वागत किया गया।
संत श्री अनुपम दास जी ने सद्गुरु कबीर साहेब के प्राकट्य उत्सव पर भजन गाकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। आश्रम के बाल संतों द्वारा भी भजन प्रस्तुत किए गए। संत चंद्रप्रकाश ने “संतों के संग लाग रे तेरी अच्छी बनेगी” भजन से श्रोताओं को भाव विभोर कर दिया।
आज से 626 साल पहले, इसी दिन सद्गुरु कबीर साहेब का लहरतालाब में कमल पुष्प पर अवतरण हुआ था। संत साहेब ने अपनी वाणी में लिखा है:
“गगन मंडल से उतरे सद्गुरु सत्य कबीर,
जलज मांहि पौढ़न किए दोउ दीनन के पीर।”
साहेब के अनुसार, सद्गुरु कबीर साहेब साधारण पुरुष नहीं थे, बल्कि बंदीछोड़, संतनहितकारी और जीवों का उद्धार करने वाले कर्त्ता पुरुष थे। धर्माधिकारी साहेब ने अपने प्रवचन में कहा कि कबीर साहेब प्रकाशपुंज रूपी कमल पुष्प पर अवतरित हुए। उन्होंने यह भी कहा कि वास्तव में ह्रदय में सद्गुरु का प्रकट करना ही असली प्राकट्य महोत्सव है। सद्गुरु कबीर साहेब जीवों के दुख को दूर करने के लिए इस संसार में आए थे। उन्हें बुद्धि से नहीं, बल्कि श्रद्धा से प्राप्त किया जा सकता है।
सद्गुरु कबीर साहेब चार दाग से न्यारे थे। दास मलूक ने लिखा है, “खोजा खसम कबीर।” नानक साहेब ने कहा, “वाह वाह कबीर गुरु पूरे हैं…नानक चरण के धुरे हैं।” नाभा दस जी कहते हैं, “वाणी अर्ब खर्ब है ग्रंथन कोटि हज़ार, करता पुरुष कबीर हैं नाभा किया विचार।” सद्गुरु कबीर साहेब पूर्ण ब्रम्ह स्वरूप हैं।
पंथ श्री हजूर अर्धनाम साहेब ने कहा कि सत्संग में बैठने से दशा और दिशा बदलती है। जब तक श्रेष्ठ ज्ञान नहीं मिलता, तब तक जीव भटकता रहता है। अपनी सुरति को सद्गुरु के चरणों में लगाना चाहिए। ज्ञान को प्राप्त करने के लिए सुरति को समेटकर गुरु के उपदेश को अनुभव करना चाहिए। उच्च कोटि के ज्ञान के रहस्य को समझना चाहिए। कबीर साहेब का परिचय सभी को नहीं होता। सेवा सबसे बड़ी भक्ति है, और बिना सेवा के भक्ति का द्वार नहीं खुलता। सभी को प्राकट्य महोत्सव की शुभकामनाएं।
इस अवसर पर भारत के कोने-कोने से भक्त श्रद्धालु सम्मिलित हुए, जिनमें पंजाब, हरियाणा, गुजरात, दिल्ली, राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, बिहार, झारखण्ड, ओड़िसा आदि राज्यों से भक्त आए। प्रमुख संत-महंतों में महंत श्री मनभंग दास जी साहेब (पटना), महंत श्री सेवा दास जी साहेब (अमरकंटक), महंत श्री घनश्याम दास जी साहेब (खरसिआ), महंत श्री मनोहर दास जी साहेब, महंत श्री चूड़ामणि दास जी साहेब (गुजरात) आदि सम्मिलित थे। पूरा परिसर कबीर वाणी से गूंजायमान हो गया था। संतों द्वारा खंजरी बजा-बजाकर पूरे परिसर को कबीरमय बना दिया गया।
इस अवसर पर आश्रम के सभी ट्रस्टी – कालूराम जी, हनुमत जी, सुधीर जी, सुरेश जी और संत हरि नारायण दास जी उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन संत संतोष दास जी ने किया।